एकलव्य परंपरा के साधक दिनेश चौहान
सुशील भोले, संजय नगर, रायपुर, 9826992811
कतकों मनखे ल मैं देखे हौं बिना काकरो अंगरी धरे, अपने सुर म रेंगत रहिथें. जइसे एकलव्य ह सिरिफ अपन मन म ही गुरु के छापा बसा के धनुर्विद्या के जम्मो मरम ल जान अउ सीख गे. ठउका अइसने दिनेश चौहान घलो हे जे अपन लगन ल ही गुरु मान के लेखन के संगे-संग चित्रकला म घलो पारंगत होगे हवय. दिनेश चौहान के असली नॉव हे दिनेश कुमार ताम्रकार फेर ए ह रचना संसार म अपन नॉव ल दिनेश चौहान ही लिखथे. वइसे उंकर महतारी ह मया कर के उनला ‘राजेन’ कहिथे.
भीमसेनी एकादशी परब 24 जून बछर 1961 के धमधा जिला दुर्ग म महतारी अगासबाई ताम्रकार अउ सियान रामकृष्ण ताम्रकार जी के घर जनमे दिनेश पेशा ले सरकारी गुरुजी हे. फेर बड़ा अचरज के बात ए आय के आज तक मैं एकर भीतर सरकारी गुरुजी वाले कोनो चिन्हा नइ देखेंव.
सुभाव ले आध्यात्मिक होय के सेती दिनेश जी संग मोर गजबे जमथे. साधना काल म जब कभू मोला राजिम त्रिवेणी संगम के कुलेश्वर महादेव के दर्शन के साध होवय, त दिनेश ल ही फोन करौं. दिनेश जी तुरते तइयार हो जावय, हाँ आना भाइया आप के संग म मोरो देव दर्शन हो जाथे. नइते भले हम रहिथन नवापारा राजिम म फेर देवता मन के दर्शन पैलगी बर महीनों बीत जथे.
वइसे उमर म मोर ले एक हफ्ता के बड़े हे दिनेश चौहान ह फेर भइया संबोधन ल उही च ह करथे. दिनेश चौहान जी एक उत्कृष्ट श्रेणी के पाठक आय, एकरे सेती वोमन हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनोच भाखा म गुरतुर लिखथें. दिनेश जी जतका सुंदर लेखन करथें वतकेच सुंदर चित्रकला म घलो निपुण हें. मैं बेरा बेरा म उंकर जगा अपन प्रकाशन ले संबंधित चित्र बनवावत रहिथौं.
अपन नियम कायदा के पक्का होय के सेती दिनेश चौहान जी कतकों बेर सरकारी तंत्र संग जूझत घलो राहय. एक बेर मैं उनला पूछेंव त उन रचनात्मक जगत म अपन नॉव ल बदल के लिखे के कारण घलो इही आदत ल बताइस.
वोकर कहना रिहिस- सरकारी रिकॉर्ड म जेन नॉव हे तेने नॉव ले कहूँ मैं सोंटा मारे छाप लेखन करहूं तब तो गड़बड़ हो जाही, तेकर ले नौकरी के अलगे अउ तुतारी बाजी के अलगे नॉव.
छत्तीसगढ़ी भाखा खातिर गजब समर्पित अउ चेतलग हे दिनेश जी ह. उंकर कहना हे- ‘जम्मो तरा के स्कूल मन म छत्तीसगढ़ी भाखा ल एक अलग अउ अनिवार्य विषय के रूप म पढ़ाए जाना चाही.’ दिनेश जी बेरा बखत म अपन लेखन मनला प्रकाशन के अंजोर घलो देखावत रहिथें. उंकर सबले पहिली किताब आए रिहिसे- ‘कइसे होही छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया.
छत्तीसगढ़ी भाखा म वर्ग पहेली बनाय के उन सुग्घर उदिम करे रिहिन हें, एकरे ऊपर आधारित उंकर दूसरा किताब आए रिहिसे- चौखड़ी जनउला.
अपन ताम्रकार समाज के रचनाधर्मी मन के चिन्हारी खातिर उंकर तीसरा किताब आए रिहिसे- सृजन साक्षी.
छत्तीसगढ़ी भाखा खातिर फेसबुक म लगातार लिखत अपन पोस्ट मनला एकमई कर के चौथा किताब छपवाय रिहिन हें- छत्तीसगढ़ी बर तुतारी.
दिनेश जी के पांचवा किताब ‘साॅंच कहे तो मारन धावै’ शीर्षक ले आए रिहिसे, जेमा अभी हालेच म बुलके महामारी ‘कोरोना’ के दूसर पक्ष ल लेके लिखे गे लेख मन के संगे-संग कुछ निबंध अउ व्यंग्य मनला संघारे गे रिहिसे.
मोर साधना काल म अंगरी गिनउ संगवारी रिहिन हें, जेमा दिनेश जी घलो एक रिहिन हें. एकरे सेती जब कभू मोर राजिम क्षेत्र म जाना होवय, त सबले पहिली उनला सोर कर देवत रेहेंव. तहाँ फेर दूनों झन संघरा किंजरई फिरई करन.
आज अपन जिनगी के बैसठ बछर पूरा करत दिनेश चौहान जी ल बधाई देवत गजब निक जनावत हे. एकर एक बड़का कारण तो इहू हे, के ए ह सेवानिवृत्त हो जाही, तब नंगत के किंजरई फिरई करही, हो सकथे महूं ल संगवारी बना ले करही.
शुभकामना देवत मैं एक पइत फेर उनला गोहराहूं. मैं इहाँ के मूल संस्कृति खातिर ठोसलग बुता करे बर एक पइत चेताए रेहेंव, आज फेर सुरता देवावत हौं, उन अपन लेखन के विषय इहाँ के मूल संस्कृति अउ अस्मिता ल घलो बनावंय.
जनमदिन के गाड़ा-गाड़ा बधाई…