किसान के अंतस के हरियाये के तिहार ‘हरेली‘
- खेम फुलकरिहा, फुलकर्रा (गरियाबंद)
हरेली हर खेती किसानी के पहिली तिहार या कहें छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार आय। ये हर सावन अंधियारी अमावस (श्रावन अमावस्या) के मनाये जाथे। ये समय चारो मुड़ा हरियर – हरियर दिखथे। ये समय लगभग 80-90 फीसदी धान अउ आने फसल के बोवई अउ रोपा लगई के बुता हो जाय रथे, जेखर ले खेत – खार अइसे लागथे मानो नवा नेवरिया बहु सुग्घर सजे हो। सब तनी हाँसि खुशी अउ हरियर – हरियर देखके किसान के अंतस घला हरिया जाथे।
हरेली तिहार के दिन किसान मन बिहनिया ले उठके अपन – अपन खेत म भेलवा डारा खोंचथे। कहे जाथे येकर ले खेत – खार नइ नजराय, फेर येकर पाछू वैज्ञानिक कारण घला हाबे भेलवा डारा ल खेत म खोंचे ले वोमा से अइसन तत्व निकलथे जेन फसल ल नुकसान पहुंचईया कीरा-मकोरा अउ कीटाणु मन ल मार देथे। खेत म डारा खोंचे के बाद किसान मन अपन नांगर अउ खेती किसानी के अउजार मन धो – मांज के एक जगा पूजा करे बर सकलथे, जेकर खाल्हे म मुरमी या रेती बगराय रथे। बढ़ई अउ राजमिस्त्री मन घला अपन – अपन अउजार मनके पूजा करथे। येमा चिला चढ़ाय के विशेष परम्परा हाबे। घर म पूजा पाठ करके लोगन मन अपन गाय – गरू ल लोंदी खवाये बर खेरखडांड़ (गौठान) जाथे। लोंदी म गहूं पिसान अउ उरिद दार सनाय रथे, येकरे संग अण्डी के पान भीतरी नून ल बांध के घला लेगे जाथे। लोंदी खवाके राउत ल दार – चांउर दे जाथे अउ राउत वोमन ल दवई (जड़ी-बूटी) देथे। जेला हरेली के परसाद मानके सबो माई – पिला खाथे। इही में के दसमूर ल खाके वोकर जरी ल घेंच अउ हाथ म पहिने जाथे।
इही हरेली के दिन ले गेंड़ी चढ़ई शुरू होथे। ये गेंड़ी ल बांस या सरई तोमा (साल वृक्ष का कोमल तना) के बनाये जाथे। येमा एक ठन पाटी अउ एक ठन पउआ रथे। पउवा ल पाटी म लइका के उंचाई के हिसाब ले नरिहर बूच के डोरी म बांधे जाथे, ताकि लइका ल गेंढ़ी चढ़े म सोहिलत होय। चार – पाँच झन गेंड़ी वाला लइका कहूं गली ले निकलथे त ओकर चरर…. चरर…… बजई ल सुनके जान डारबे कि गंेड़ी चढ़इया नाहकत हे। अउ कहूं गेड़ी नइ बाजे त लइका मन रिसा घला जाथे कि मोर गेंड़ी कइसे नइ बाजत हे, फेर नरिहर बूच म माटी तेल डार दे जाथे तहान गेंड़ी के बजई ल झिन पूछ।
वइसे त तिहार किसान मनके तिहार कहे जाथे, फेर ये तिहार म राउत (ठेठवार) जाति मनके बड़ महत्तम हाबे। इँकर मन बर ये तिहार एक दिन पहिली ले शुरू हो जाथे, ये दिन ये मन उपास रहि के जंगल जाथे अउ उँहा ले दवई कोड़के लानथे। ये दवई म गोंदली (बन गोंदली), दसमूर (शतावर) अउ कंउआ कांदा (काला मूसली) रिथे। उँखर जंगल जाये के पाछू रउताईन मन अपन – अपन ठाकुर घर उपासी चांउर मांगे बर जाथे, जेमा के सकलाये पइसा ले माटी के हड़िया बिसाये जाथे, तिही म राउत के कोड़ के लाने दवई ल रात भर चुरोय जाथे। हरेली के दिन बिहनिया राउतमन भेलवा डारा लानके अपन – अपन ठकराहन घर खोंचे बर जाथे। उंहा ले आके रात भर चुरे दवई ल जुड़ो के खेरकाडांड़ लेगथे अउ किसान मन ल बाँटथे।
इही दिन गाँव के बइगा बबा हर लीम (नीम) डारा घरो – घर खोंचथे अउ लोहार ह अपन ठाकुर मन घर जाके घर के मुहांटी के चंउखट म खीला ठेंसथे। इही तिहार के दिन ले गुरवारों मन म जड़ी बूटी (दवई) के शिक्षा अउ वोमन ल जागृत करे के मंत्र सिखाय के घला शुरूवात होथे, जेन भादो अँजोरी के पंचमी (ऋषि पंचमी) तक चलथे।