खेती किसानी संग मंत्र जगाए के परब हरेली…
सुशील भोले, आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
छत्तीसगढ़ राज के जतका मूल परब-तिहार हे, सबके संबंध कोनो न कोनो रूप ले अध्यात्म संग जरूर हे। ए बात अलग आय के आज हम उंकर मूल कारण ल भूलागे हावन, तेकर सेती प्रकृति या खेती-किसानी संग जोड़ के वोला कृषि संस्कृति के रूप म बताए अउ जाने लगथन।
खेती किसानी संग मंत्र जगाए के परब हरेली…
इहां के संस्कृति म सावन महीना के पहला परब “हरेली” के संग घलो अइसनेच बात हे। ए दिन जम्मो किसान अपन नांगर- बक्खर संग आने जम्मो कृषि यंत्र के धो-मांज के पूजा करथें। एकरे सेती एकर चिन्हारी ल कृषि पर्व के रूप म बताए जाथे। फेर एकर आध्यात्मिक पक्ष के अनदेखा कर देथें।
आप सबो झन जानथौ के इही दिन या एकर आगू रतिहा जम्मो गाँव मन म गाँव बनाए के परंपरा ल घलो पूरा करे जाथे। इहाँ के ग्रामीण संस्कृति म “बइगा” कहे जाने वाला “मांत्रिक” मन इही दिन अपन-अपन मंत्र के पुनर्पाठ करथें। माने साल भर म वोला फिर से जागृत करथें। कतकों झन मन इही दिन मांत्रिक गुरु अउ शिष्य घलो बनाथें। गुरु शिष्य के रूप म परब मनाथें।
इहाँ ए बात जाने के लाइक हे, के सावन महीना के इही अमावस के दिन महादेव ह मांत्रिक शक्ति के उदगार या प्रकट करे हें। अइसे लोकमान्यता हे के, उन अपन त्रिशूल म बंधाए सिंघिन ल फूंक के मंत्र मन के उद्घोष करे हें, उनला प्रगट करे रिहिन हें। अब ये कतका सही अउ कतका कल्पना के बात आय, एला तो उहिच ह जानय, फेर ए बात सोला आना सच आय, के हरेली परब के संबंध अध्यात्म संग जरूर हे।
मंत्र के माध्यम ले लोकहित के भावना घलो साक्षात नजर आथे. हमर इहाँ ए दिन गाँव के लोहार समाज के मन अपन-अपन मालिक घर जाथें अउ उंकर घर के चौखट म खीला ठेंसथें. अइसने बइगा मन घर के दुआर मन लीम पाना खोंचथें. इही किसम घर के माई दरवाजा के संगे-संग कोठा आदि म गोबर के पुतरीनुमा जेन छापा बनाए जाथे, सबके भाव संबंधित घर के हर प्रकार के रोग राई अउ बाहरी बाधा आदि ले सुरक्षा के ही भाव रहिथे.
आज के दिन ल गाँव के पहाटिया समाज के मन अड़बड़ नियम ले मानथें।तिहार के आगू दिन भिनसरहा लेे बने नहा-धो के जंगल जाथें अउ मवेशी मन बर जड़ी-बूटी खोज के लाथें। रातभर जाग के कांदा–कुसा ला उसनथें। उसने के बेरा रात भर पहरा देथें, के काहीं जीव जंतु वोमा झन खुसर जाए । साथ में टोटका घलो करथें। ये काम ला पुरुष मन करथें. अपन देव धामी के पूजा करथें, सहड़ा देवता म चढ़ाथें । घर के मुहाटी म लीम के डारा ला खोचथें ।
सूत उठ के बिहनिया लेे गाँव के किसान मन हा अपन अपन घर लेे दार-चांऊर, नून, मिर्चा, खम्हार पान मा धर के पहाटिया कना जाथें, उंकर मन करा लेे गोंदली, दसमूल कांदा ला घर म लान के अपन गाय, बछरू, बईला, ला पिसान के लोंदी अउ नून संग खवाथें।
हरेली तिहार के एक दिन आगू ले नारी परानी मन हा घर दुआर ला गोबर पानी म लिप -बहार के छरा-छिटका दे डारे रथें। घर- घर म उरिद दार संग लपेट के कोचई पान के ईडहर के साग चुरथे ।
लाईका मन बर बांस के गेंड़ी बनाथें. पांव मढ़ाए बर बांस के तिकोनिया कमचिल लगा के माटी तेल डार देथें, लईका मन वोमे चढ़ के रेंगाही तब चर्र–चर्र आवाज करथे त लइका मन खुश हो जाथें, कतकों झन तो एकरे सेती एला गेंड़ी तिहार घलो कहिथें. हमन जब लइका रेहेन, त हमर गाँव म ए दिन गेंड़ी दौड़ के प्रतियोगिता घलो होवय. एकर संगे-संग नरियर फेंकउला के घलो प्रतियोगिता होवय. गजब आनंद आवय.
अभी हमर छत्तीसगढ़ सरकार ह इहाँ के जम्मो स्कूल मन म हरेली परब मनाए के आदेश निकाले हे, जेमा लइका मन बर गेंड़ी दौंड़ के प्रतियोगिता आयोजित करे के घलो उल्लेख हे. ए ह अच्छा बात आय, लइका मनला बचपन ले ही अपन संस्कृति-परंपरा संग जुड़े अउ समझे खातिर ठउका उदिम साबित होही. एकर खातिर सरकार के जतका बड़ाई करे जाय कम हे.
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