सुराजी वीर अनंतराम बर्छिहा: 22 ले 28 अगस्त सुरता सप्ताह म बिसेस
सत् मारग म कदम बढ़ाके, देश-धरम बर करीन हें काम।
वीर सुराजी वो हमर गरब आय, नांव जेकर हे अनंतराम।।
देश ल सुराज देवाय खातिर जे मन अपन जम्मो जिनिस ल अरपन कर देइन, वोमन म अनंतराम जी बर्छिहा के नांव आगू के डांड़ म गिनाथे। वो मन सुराज के लड़ाई म जतका योगदान देइन, वतकेच ऊँच-नीच, छुआ-छूत, दान-दहेज आदि के निवारण खातिर घलोक देइन, एकरे सेती एक बेरा अइसे घलोक आइस के अनंतराम जी ल अपन जाति-समाज ले अलग घलोक रहे बर लागिस। अछूतोद्धार के कारज खातिर गाँधी जी ह छत्तीसगढिय़ा गाँधी के नांव ले विख्यात पं. सुंदरलाल जी शर्मा के संगे-संग जम्मो छत्तीसगढ़ ल अपन गुरु मानिन, त एमा अनंतराम बर्छिहा जइसन मन के घलोक योगदान हवय।
अनंतराम जी बर्छिहा के जनम छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर ले करीब 24 कि.मी. दूरिहा म बसे गाँव चंदखुरी म 28 अगस्त सन् 1890 म होए रिहिसे। ए मेर ये जानना जरूरी हवय के रायपुर के उत्ती दिशा म बसे ये चंदखुरी ह उही ऐतिहासिक गाँव आय, जेला हमन दुनिया के एकमात्र कौशिल्या मंदिर खातिर जानथन। अनंतराम जी के माता के नांव यशोदा बाई अउ पिता के नांव हिंछाराम जी बर्छिहा रिहिसे।
अनंतराम जी के लइकई उमर के नांव नंदा रिहिसे। उंकर सियान हिंछाराम जी कुल 15 एकड़ खेती के जोतनदार रिहिन हें, एकरे सेती घर के आर्थिक स्थिति थोरुक कमजोर रिहिसे। बाबू नंदाए ले चौथी कक्षा के बाद अपन पढ़ाई ल छोड़े बर परगे, अउ एकरे संग वो ह नांगर-बक्खर अउ खेती-किसानी म भिडगे। इही बीच उंकर सियान सरग के रस्ता चल देइन। अब अतेक बड़ परिवार के जोखा-सरेखा नंदा के खांध म आगे, तेमा अकाल-दुकाल के मार। वो अइसे सुने रिहिसे के व्यापार करे म लछमी के आवक जल्दी होथे, एकरे सेती वो खेती के संगे-संग छोटकुन दुकान घलोक चालू करीस। तीर-तखार के गाँव मन म काँवर म समान धरके घलोक जावय। वोकर मेहनत अउ ईमानदारी ह रंग लाइस, अउ देखते-देखत वो बड़का बैपारी के रूप म अपन चिन्हारी बना डारिस। सिरिफ तीरे-तखार के गाँवेच भर म नहीं भलुक दुरिहा के गाँव मन म घलोक वोकर नांव के डंका बाजे लागिस।
गांधी जी के दरसन बर रायपुर आईन
सन् 1920 के बात आय। जब गाँधी जी रायपुर आइन त उंकर दरस करे के साध कर के बर्छिहा जी रायपुर आइन, अउ गाँधी जी के वाणी ल सुन के वो गाँधी जी के अनुयायी बनगें। वो बेरा ह तो स्वतंत्रता संग्राम के बेरा रिहिसे। पूरा देश म एकर लहर चलत रिहिसे, तेकरे सेती जम्मो मनखे के मन म कोनो न कोनो किसम ले सुराज के भावना मन रहिबे करय, त भला अनंतराम वो लहरा ले कइसे बांचे सकत रिहिसे। छत्तीसगढ़ अंचल लोकमान्य तिलक के आंदोलन ले प्रभावित हो चुके रिहिसे। पं. माधवराव सप्रे ह सन् 1900 म ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ के प्रकाशन चालू कर डारे रिहिसे। 1903 म भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्थापना रायपुर म होगे रिहिसे। सन् 1907 म स्वदेशी जिनिस मनके दुकान खुलगे रिहिसे। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ‘सामाजिक असमानता’ के खिलाफ संघर्ष करत बिलासपुर तक आगे रिहिन हें।
एकर प्रभाव पूरा छत्तीसगढ़ म परत रिहिसे। अइसन म युवा अनंतराम के मन म ए सबके प्रभाव कइसे नइ परतीस? बर्छिहा जी के अपन कुर्मी जाति समाज तो पहिलीच ले ए मारग म आगू बढ़ चुके रिहिसे। गाँधी जी के आगमन तो ये सुलगत आगी म घीव के कारज करीसे। अइसन म बर्छिहा जी भला कहाँ पाछू रहितीन, उहू मन अपन दुकानदारी के जम्मो काम-काज ल अपन छोटे भाई सुखराम बर्छिहा के खांध म सौंप के राष्ट्रीय आंदोलन म कूद गें।
6 महीना के जेल यात्रा
सन् 1923 म नागपुर म झंडा सत्याग्रह चालू होइस। छत्तीसगढ़ के जम्मो खुंट ले सत्याग्रही मन नागपुर पहुंचे लागिन। वो सत्याग्रह म भाग लेके छै-छै महीना के सजा घलोक काट आइन। बर्छिहा जी के ये पहली जेल यात्रा रिहिसे, जेला उन नागपुर केंद्रीय जेल म काटिन। वोकर बाद तो उन घर-बार ल छोड़ के गाँव-गाँव अलख जगाये लागिन। एकर सेती उनला सन् 1930 म एक पइत फेर एक बछर के सजा होइस। सन् 1930 के आंदोलन के केंद्र चंदखुरी च गाँव ह बनगे रिहिसे, जेकर प्रसिद्धि पूरा देश भर म होए रिहिसे। वो गाँव के मन अनंतराम बर्छिहा के अगुवई म असहयोग आंदोलन म बड़का भूमिका निभाए रिहिन हें। गाँव-गाँव जाके विदेशी जिनिस मनके बहिष्कार के बात करयं, वो जिनिस मनके होरी बारयं, छुआछूत मिटाए के बात करयं, खादी ग्रामोद्योग के प्रचार करयं, सहभोज के आयोजन करयं, बीमार मनखे मन के सेवा करयं, उनला दवई बांटंयं, गाँव के साफ-सफाई करयं, नान्हें लइका मनला पढ़े खातिर प्रोत्साहित करयं।
चंदखुरी गांव स्वतंत्रता आंदोलन के गढ़
चंदखुरी गाँव वो बखत राष्ट्रीय आंदोलन के गढ़ बनगे रिहिसे। अइसे म फिरंगी शासन कब तक कलेचुप बइठे रहितीस? गाँव म पुलिस के घेरा डार दिए गेइस। एक बटालियन पुलिस उहां तैनात कर दे गइस। फेर वो पुलिस वाला मनके गुजारा होतिस कइसे? सरकारी व्यवस्था के खिलाफ म तो आंदोलन होवत रिहिसे। पुलिस वाले मनला मांगे म कोनो आगी-पानी तक नइ देवत रिहिन हें। बर्छिहा जी के दुकान म बिसाए म घलोक कोनो समान नइ मिलत रिहिसे। अइसन म पुलिसवाला अउ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन के आपस म ठनना स्वभाविक रिहिसे। ए बगावत के असर आसपास के अउ आने गाँव मन म घलोक बगरत जावत रिहिसे।
एकर जानकारी जिला के अधिकारी मन जगा घलोक पहुंचीस। जिला कप्तान चंदखुरी पहुंचीस अउ उहां के लोगन ल समझाए-बुझाए के उदिम करिस। बर्छिहा जी के दुकान ले समान लेना चाहिस। उंकर जगा संदेश भेजवाइस। जेकर जवाब मिलिस- ‘आप हमर इहाँ मेहमान बनके आहू त आपके सुवागत हे, फेर कहूं सरकारी अधिकारी बनके आहू, त आपला हमर असहयोग हे।’ ए जुवाब ले अधिकारी चिढग़े, अउ पूरा गाँव म कहर मचा देइस। घुड़सवार पुलिस वाला मन पहुंचीन अउ पूरा गाँव ल रौंद डारिन। बर्छिहा जी के दुकान ल लूट डारिन। अतको म उंकर मन नइ माढि़स त घोसना कर डारिन के बर्छिहा जी के दुकान ले जेन कोनो उधारी लिए होहीं वोला वापस झन करे जाय। संग म अनंतराम बर्छिहा के संगे-संग गाँव के अउ सात झनला गिरफ्तार करके जेल भेज देइन। गिरफ्तार लोगन म रिहिन हें- बर्छिहा जी के छोटे भाई सुखराम बर्छिहा, बर्छिहा जी के बड़े बेटा वीर सिंह बर्छिहा, नन्हे लाल वर्मा, गनपतराव मरेठा, हजारीलाल वर्मा, नाथूराम साहू अउ हीरालाल साहू।
जुर्माना ले बन गे सेठ ले फकीर
बर्छिहा जी के लाखों रुपिया के संपति नष्ट होगे, जेकर निसानी ल आजो देखे जा सकथे। उन सेठ ले फेर फकीर होगे रिहिन हें। तभो ले उनला एक साल के फेर सजा होगे, अउ संग म जुर्माना घलोक लाद देइन। जुर्माना नइ पटाए के सेती उंकर नांगर-बख्खर, गाय-बइला आदि के नीलामी कर दे गइस। बर्छिहा जी के संग ये सिलसिला सन् 1942 तक सरलग चलीस।
आज कस आसान नई रिहिस पहिली के जेल यात्रा
सन् 1930-32 के जेल यातना ह आज कस सहज नइ रिहिसे। उंकर मन जगा चक्की चलवायं, घानी म बइला के जगा उनला फांद के तेल पेरवायं, पानी के रहट चलवायं। उनला लोहा के बरतन म खाना देवयं, तेल-साबुन के तो नामे नइ रिहिसे। पहिने खातिर एक जांघिया अउ एक बंडी, कनिहा म बांधे खातिर एक ठन पंछा अउ एक ठन टोपी। बिछाए अउ ओढ़े खातिर दू ठन कमरा अउ एक ठन टाटपट्टी। फेर सत्याग्रही मन म कतकों अइसे राहयं, जेन खादी के छोड़ अउ कोनो जिनिस के उपयोगेच नइ करत रिहिन हें। अनंतराम जी घलोक वइसने खादी धारी रिहिन हें, उन दूसर कपड़ा मनला उपयोग नइ करत रिहिन हें, तेकरे सेती जेल म उन नग्न अवस्था म राहयं। सिरिफ लोक मर्यादा खातिर उन एक ठन कमरा ल लपेट ले राहयं। अइसन खादी व्रतधारी रिहिन हें बर्छिहा जी।
छुआछुत मिटाए बर उदिम
अब चिटिक उंकर सामाजिक क्रांतिकारी रूप के चरचा। सन् 1933 ह अस्पृश्यता निवारण के इतिहास म बहुते महत्वपूर्ण बछर आय। बाबा साहेब अंबेडकर अउ गाँधी जी के बीच होए पुना पेक्ट के अनुसार अस्पृश्यता के कलंक ल मिटाए खातिर पूरा देश म अभियान चालू करिन। छुआछूत के संगे-संग, कुरीती, गरीबी, अज्ञानता, अशिक्षा ल मिटा के स्वावलंबन के रद्दा देखाइन। ये जम्मो बात बर्छिहा जी के अंतस म उतर आइन। अउ ये जम्मो कारज के शुरुवात उन अपनेच घर ले चालू करीन। वो बखत जम्मो गाँव-घर म छुआछूत के चलन भारी मात्रा म होवत रिहिसे। उन अपनेच गाँव के अइसन जाति कहाने वाला लोगन ल सामाजिक अधिकार देवाए खातिर आंदोलन चलाइन। अइसन जाति-समाज के लोगन मन सार्वजनिक कुंआ ले पानी नइ ले सकत रिहिन हें, वोकर मन खातिर उन अपन घर के कुंआ ल खोलवाइन। मरदनिया मन उंकर हजामत नइ बनावत राहंय, त उन खुद उंकर मनके हजामत बनावयं। धोबी के कारज ल घलोक उन खुदे करयं। उन अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन चलाइन तेकर सुफल ये होइस के उंकर गाँव के मंदिर ह सबो मनखे खातिर खुलगे। गाँव के वातावरण तो उंकर अनुकुल होगे, फेर वोकर खुद के जाति-समाज के मुखिया मनला ये सब बात नइ सुहाइस, अउ उन बर्छिहा जी के परिवार ल अपन जाति ले बाहिर के रद्दा देखा देइन।
‘न तो वो दहेज लेवय, अउ न दहेज देवय।’
उंकर ले रोटी-बेटी के संबंध, पौनी-पसारी के संबंध, घाट-घटौंदा के संबंध जम्मो ल बंद कर दिए गेइस। वो बखत के स्थिति के चित्रण करत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अउ सामाजिक नेता डॉ. खूबचंद बघेल ह लिखे हवयं- ‘गाँव के परिस्थिति विस्फोटक होगे रिहिसे। पांचों पवनी माने- नाऊ, धोबी, राउत, मेहर अउ लोहार मन उंकर जम्मो काम-धाम ल छोड़ दिए रिहिन हें। उंकर समाज उंकर संग जम्मो किसम के व्यवहार ल बंद कर दिए रिहिसे, तभो ले बर्छिहा गाँधी जी के आदर्श म चलत मगन राहयं।’
वो समय तक मनवा कुर्मी समाज म प्रगतिशीलता आए ले धर लिए रिहिसे। बर्छिहा जी के ही विचार ल मानने वाला एक परिवार उंकर बेटी ल अपन बहू के रूप म ले के समाज ले बहिष्कृत होए बर तइयार होगे। फेर बात अतकेच म नइ बनिस। काबर ते बर्छिहा जी के एक ठन अउ संकल्प रिहिसे के ‘न तो वो दहेज लेवय, अउ न दहेज देवय।’ वो ककरो समझाए म घलोक नइ समझत रिहिन हें। तब वो परिवार वाले मन अइसनो खातिर मानगें।
दू भाग म बंटगे मनवा कुर्मी समाज
बर्छिहा जी के जम्मो शर्त ल मानने वाला परिवार दुरुग जिला के सिलघट नामक गाँव के टिकरिहा परिवार रिहिसे। ये बिहाव के जुराव ल मनवा कुर्मी समाज ल दो भाग म बांट देइस। जुन्ना पीढ़ी ए मन ल सबक सिखाए खातिर त नवा पीढ़ी ए नवा सामाजिक सुधार ल लागू करे खातिर। नवा पीढ़ी के वो बखत मुखियाई करत रिहिन हें- डॉ. खूबचंद बघेल, जगन्नाथ बघेल, दुर्गासिंह सिरमौर, प्रेमतीर्थ बघेल, जयसिंह वर्मा, वीरसिंह बर्छिहा के संगे-संग आने समाज के वो समय के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मन, जे मन वो बिहाव के पतरी उठाए ले लेके जम्मो किसम के नेंग-जोंग सबो ल करीन। बर्छिहा जी के बेटी राधबाई ह खादी के साड़ी पहिन के मंडप म बइठिस। भांवर के बाद दहेज के रूप म सिरिफ एक ठन सूत काते के चरखा अउ पानी दे गेइस। अइसन आदर्श बिहाव ये छत्तीसगढ़ अंचल म एकर पहिली कभू नइ होए रिहिसे। आज घलोक अइसन आदर्श के चरचा न तो कहूँ सुने ल मिलय अउ न देखे ल। बर्छिहा जी अइसन महापुरुष रिहिन हें, जेन सामाजिक क्रांति के शुरुआत अपनेच घर ले करे रिहिन हें।
संघर्षशीलता के संगे-संग प्रशासनिक क्षमता
बर्छिहा जी म संघर्षशीलता के संगे-संग प्रशासनिक क्षमता घलोक रिहिस हे। उन कई बछर तक तहसील कांग्रेस के अध्यक्ष रिहिन। सन् 1937 म अपन अंचल ले विधायक घलोक बनीन। उन जब तक जीइन दीया बनके जीइन, लोगन बर अंजोर करीन। छत्तीसगढ़ महतारी के ये सपूत ह अपन पूरा जीवन ल देश खातिर समरपित कर देइस। 22 अगस्त सन् 1952 के उन ये नश्वर दुनिया ले बिदा ले लेइन।