लोक आस्था के परब ‘आठे’
पूरा देश अउ दुनिया म मनाए जाने वाला कोनो परब-तिहार जब लोक के डेहरी म पहुंचथे, त वो अपन एक अलगेच अउ मौलिक रूप धर लेथे. हमर छत्तीसगढ़ म एक अइसने परब देखे बर मिलथे, जेला हम सब ‘आठे’ या ‘आठे कन्हैया’ के नांव ले जानथन.
–सुशील भोले, संजय नगर, रायपुर
योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के परब ल पूरा दुनिया म भादो महीना के अंधियारी पाख म आठे (अष्टमी) तिथि म मनाए जाथे. ए अष्टमी तिथि के सेती ही एला आठे कहिथे. एकर संबंध म एक मान्यता इहू हवय- भगवान कृष्ण ह अपन महतारी देवकी के गरभ ले जनम लेवइया आठवाँ संतान रिहिसे, तेकर सेती एला आठे कहे जाथे.
हमन जब लइका राहन गाँव म राहत रेहेन, त ए आठे के दिन बिहनिया ले बारी अउ बियारा मन म जाके सेमी पान टोर के लावन अउ वोला कुचर के हरियर रसा ल निकालन. गाँव के भांठा ले भेंगरा पान घलो लानन, वोमा जादा रस निकलय. महतारी बहिनी मन के पांव म रचाए के माहुर ले लाली रंग बनावन अउ बमरी के दतवन ल कुचर के लिखे/पेंटिंग करे खातिर कुची बनावन. कभू-कभू स्कूल-कापी म लिखे खातिर पहिली जेन कांच के दवात म स्याही राहय वोकरो उपयोग पेंटिंग खातिर कर लेवन.
इहाँ ए बात जानना जरूरी हे, पहिली भगवान कृष्ण के मूर्ति या फोटो आदि आज अतका सहज उपलब्ध नइ रिहिसे. खास करके गाँव-गंवई म तो बिल्कुल नहीं. तेकर सेती उंकर पूजा खातिर अपन घर के पूजा ठउर म भिथिया म भित्ति चित्र बनाए जावय. हमर मन के बिहनिया ले रंग कुचरई के बुता ह उही भित्ति चित्र के रेखांकन खातिर राहय.
पूजा घर के कोठ म दू-तीन फीट के ऊंच म डमरू असन आकार वाले आठ ठन लइका के पुतरा बनाए जाय. लोगन एला अपन- अपन कल्पना के अनुसार बना लेवंय. कोनो सिरिफ आठ झन लइका भर के छापा, त कोनो बड़का असन डोंगा म आठ लइका मनला खड़े कर देवंय. कतकों झन ऊपर म आठ लइका के छापा अउ तरी म नंदिया घलो बना लेवंय, जेमा डोंगा, सांप, मछरी सब के छापा उकेर देवय. तहाँ ले इही सब ल भगवान के अवतरण के प्रतीक मान के एकरे पूजा कर लेवंय.
हमर इहाँ के परंपरा म कृष्ण जन्म ले जुड़े एक अउ परंपरा देखे ले मिलथे. जब ककरो घर लइका के जनम होथे, त वोला धान ले भरे सूपा म बइठारे के नेंग करे जाथे. बाद म वो सूपा भर धान ल जचकी कराने वाली दाई ल दे दिए जाथे. ए परंपरा ल भगवान कृष्ण संग जोड़े जाथे. सियान मन के कहना हे- भगवान जब जनमिस त जेल म रिहिसे. वोकर सियान वासुदेव जी तब वोला कंस के हाथ लगे ले बचाए खातिर वो जगा रखाए सूपा (साहित्य के अध्ययन ले टोकरी के जानकारी मिलथे) म बइठार के नंद बाबा के इहाँ अमराए रिहिसे. एकरे सेती हमर इहाँ नवा अवतरे लइका ल धान ले भरे सूपा म बइठारे के नेंग करे जाथे.