chhattisgarh के पहला छत्तीसगढ़ी गरबा गीत म गरब करव – सोनिया वर्मा
जय जोहार @ रवि देवांगन…. (chhattisgarh) गरबा ह गुजरात, राजस्थान अउ मालवा प्रदेस म प्रचलित एक ठीन लोकनृत्य हे, जेखर मूल उद्गम ह गुजरात हे । एला पुरा देस म आधुनिक नृत्य कला म स्थान प्राप्त हो गेहे । माता के दरबार म गरबा खेले के धार्मिक महत्व हे।
मान्यता हे कि मां अंबे ह महिषासुर के वध करीन। महिषासुर के अत्याचार ले मुक्ति मिले म मनखे मन ह नृत्य करीन, ए नृत्य ल ही गरबा के नाव ले पहचाने जावत हे। श्रद्धालु मन के मानना हे कि मां अंबे ल ये नृत्य बहूत पसंद हे। (chhattisgarh) एखर सेती घट स्थापना होय के बाद ए नृत्य के आरंभ होथे। एखर सेती आप मन ल हरेक गरबा नाईट म काफी सजे हुये घट दिखथे, जेमा दिया ल जलाके ए नृत्य ल आरंभ करे जाथे, ये घट दीपगर्भ कहाथे अउ दीपगर्भ ही गरबा कहाथे,
ये बड़ प्रसन्नता अउ गरब के विसय हे कि चम्पेश्वर गिरि गोस्वामी डहार ले (chhattisgarh) छतीसगढ़ी भाखा म घलो पहला गरबा गीत लिखे अउ संगीत बद्ध करे गे हे। गोपा सान्याल ह गीत म अपन स्वर देहे। गीत के कोरस तन मन ल झंकृत कर दे हावय, पांव ह अपने अपन थिरके ल लगत हे । “गीत ले बलावंव मा” तोर बिन कुछ नई भावय माता, मन तोला गोहरावय माता” ए गीत के बोल भले ही छतीसगढ़ी शब्द म हे, फेर श्रोता मन ल समझे म बिल्कुल कठिनाई नई होही।
ये माता के आसीर्वाद ही हे जेन अन्तरा हो या मुखड़ा ,बड़ सुग्घर अउ भक्तिमय बन पड़े हे, कण-कण म माता के होय के अनुभव ल करवावत हे। गीत के बोल के संग संगीत अउ गोपा जी के आवाज़ के जादू ह मन मोह लेवत हे। अवइया बेरा म ये गीत ह माता पंडाल अउ दरबार म अवश्य धूम मचाही अऊ मचावत रही।