एक भाई नक्सली बनिस, दूसर बनिस पुलिस, काकर होईस मौत अउ कहां चलिस गोली, जानव बस्तर के बड़े सच
दंतेवाड़ा। एक परिवार के दो भाई, एक नक्सली बन गे अउ दूसर हा पुलिस। दोनों के बीच बिचारधारा के लड़ई चलत रिहिस। एक-दूसर ला अपन-अपन रस्ता ला छोड़े बर काहंय, लेकिन न तो नक्सली भाई हा अपन रस्ता ला छोड़िस न तो पुलिस भाई हा अपन फर्ज ले डिगिस। जंगल म मुठभेड़ होईस, एक भाई के मौत होईस, अउ दूसर ला दुख, लेकिन आज भी ओकर इही कहना हे भटके संगी-साथी मन लहुट आवव मुख्यधारा म, नई ते मोर गोली तुम कोनाे ल नई चिन्हय।
जानकारी के मुताबिक कुन्ना डब्बा म शुक्रवार के बिहनिया मुठभेड़ म 5 लाख रुपया के इनामी नक्सली हुर्रा हा मारे गिस। नक्सली हुर्रा के मौत के बाद ओकर हवलदार भाई सोमारू कड़ती हा मीडिया ले बात करत बताईन कि हुर्रा हा मोर बड़े पिताजी के लड़का रिहिस। ओ हा नक्सल संगठन ज्वाइन करिस, मैं हा पुलिस के नौकरी ला चुनेंव। कई बार ओ हा पुलिस के नौकरी छोड़े के मोर ऊपर दबाव बनाईस, त मैं हा ओ ला नक्सल संगठन ला छोड़े के। लेकिन ओ नई मानिस।
ओ जब धमकी देवय त मोरो इही जवाब राहय कि जंग के मैदान म आमना-सामना हो गे, त न तो ओकर गोली मोला चिनही, न ही मोर गोली ओला। आज जब एनकाउंटर होईस त टीम म मैं शामिल जरूर नई रेहेंव, लेकिन यदि मैं होतेंव तभो इही करतेंव। मैं हर ऑपरेशन म शामिल रेहेंव, आज मोला ये बात के अफसोस हे कि ये एनकाउंटर म मैं नई रेहेंव।
दरअसल, सोमारू हा मदाडी के रहने वाला हें, जबकि नक्सली हुर्रा समलवार के। सोमारू साल 2014 म पुलिस म भर्ती होय रिहिन। ओ हा डीआरजी टीम म शामिल हें। मार्च 2017 म बुरगुम म होय एनकाउंटर म नक्सली मन ला ढेर करे खातिर ओला आउट ऑफ टर्न भी मिल चुके हे। अभी वो हा डीआरजी म हवलदार हें।
एसपी डॉ अभिषेक पल्लव व डीआरजी के आरआई वैभव मिश्रा हा बताईन कि सोमारू आज कोई कारण वश एनकाउंटर म शामिल नहीं हो पाईस। कर्तव्य के प्रति ईमानदारी हमेशा देखे बर मिलथे। ओ हा दूसर मन बर बड़े प्रेरणा हें।
हवलदार सोमारू हा बताईन कि हुर्रा हा साल 2005-06 से नक्सली संगठन ले जुड़े रिहिस। हमन दोनों भाई के संग-संग अच्छा मित्र घलो रेहेंन। हमन बचपन म साथ म खेलन। मोर स्कूल के कपड़ा ला ओहा पहिनय। मैं हा जब पुलिस के नौकरी शुरू करेंव जब ओकर धमकी मोला मिलय कि मैं ये तय कर लंव कि मोला मां-बाप चाहिए या नौकरी। ओकर धमकी के बाद भी मैं डर्राएंव न ही। काबर कि मोर जुनून शुरू से देश सेवा के रिहिस हे।
जब ले मैं नौकरी म आए हंव, घरेच नई गे हंव। माता- पिता मोर ले मिले बर दंतेवाड़ा आ जाथें। हुर्रा लोग दो भाई हैं। हुर्रा ही सबले खूंखार रहिस हे। अगर एक जवान होए के नाते कहंव त ओकर मौत ले मोला कोई गम नई हे, लेकिन भाई के मारे जाए के दर्द हे।
ओकर अंत्येष्ठी म शामिल होए के सवाल म सोमारू हा किहिन कि भाई होए के नाते मोला शामिल होना चाही, लेकिन सुरक्षागत कारण ले मैं नई जावंव। मोर गांव के आसपास के जतका भी बचपन के साथी हें ओमन अब नक्सल संगठन म शामिल हें। ओमन म चोलनार के लक्खे, गुदरु, आलनार के जोगा, हिरोली के भी कुछ आदमी हें।
ओकर मन ले मैं इही कहूं कि अब भी समय हे, मुख्य धारा म लहुट आवव, इहां रहके पुलिस के नौकरी करव। एनकाउंटर म जब भी सामना होही हुर्रा बरोबर मारे जाहू। ओ समय मोर गोली तुमन ला चिन्हय नई कि हमल कभू मित्र रेहें हन।