गुने के गोठ: लिमउ अउ मिरचा के पीरा
विजय मिश्रा ‘अमित’
बारहों महीना बड़े बिहनिया किंजरे फिरे के मोर आदत हावय। एखर ले तन ल ताजा हवा अउ मन ल किसिम किसिम के बने बने बिचार तको मिलथे। काली के बात आय मेहर रोज कस बिहिनिया चार बजे किंजरे बर निकले रेहंव। उही बेरा म कखरो सिसक सिसक के रोये के आवाज सुने म अइस। मेहर ओ कोती गेंव त एकठिन धागा म गंथाये लिमउ अउ मिरचा ल रोवत देखेंव। ओमन ल देख के मोर मन म दया आगीस। मेहर अपन दोनों हाथ के अंजरा म ओमन ल उठायेंव। अउ पूछेंव का पाय के तुमन अतेक रोवत हो? मोर सवाल ल सुनके लिम्बू हर भड़क गे अउ गुस्सा म थरथर कांपत बोलिस- मनखे मन के करतूत ल भोगत भोगत हमन रोवत हन। तूमन सूजी धागा म लिमउ अउ मिरचा ल गुंथ के घर दुकान के दुवारी अउ गाड़ी घोड़ा म लटका देथो।
हां बात तो तोर सही आय कहत मेहर लिमव अउ मिरचा ल सहलावत बोलेंव- बने हरियर हरियर अउ लाल लाल मिरचा के संग म परियर परियर लिमउ ल धागा में गुंधाये देखबे त अइसे लागथे जानो मानो नवां नवां दूल्हा दुल्हिन के गंठजोड़ होय हवय। मोर ए बात ल सुनके मिरचा हर भड़क गीस अउ बोलिस, दूसर के दुख पीरा म हंसोइया मनखे तुम तो अइसनेहेे सोंचबे करहू। फेर कभू सोंचे हो, कि खुद के गोड़ म कांटा गड़थे त कतका पीराथे। इलाज कराय बर डाक्टर करा जाथो त सूजी लगाय के बेरा तुमन के पुठेरा कांप जाथे।
अरे… तुमन तो भूत परेत जादू मंतर के चक्कर म परके अपन सदगति के आस म मिरचा अउ लिमउ ल घर, दुकान के दुवारी म टांगथो अउ दूसर दिन उतार के ओला फेंक देथो। कभू सोंचे हो की ये लिमउ अउ मिरचा हर किसान के पसीना ओगरावत मेहनत के बल म उपजे हावय। ऐला पाले पोसे बर पानी, खातू पलाय हे। ये सब काम बर बिजली तको खरचा हो हे। तूमन अइसन कीमती जिनीस ला मोहाटी म टांगतो फेर दूसर दिन सड़क म फेंक देथो। इही पाय के तुंहर दुरगति होवत हे।
मिरचा के गोठ ल सुनके हुंकारू भरत लिमउ हर बोलिस- हव मिरचा बहिनी सही कहथस। मनखे मन अपन सुवारत अउ अंधबिस्वास के चक्कर म परके सोचथें की लिमउ अउ मिरचा टांगे ले दुख पीरा दुरिहा जाही। फेर थोरकिन हरदय म हाथ रखकर सोंचय कि अइसन काम करे ले तो उल्टा मनखे मन ल सराप मिलथे। भुइंया के भगवान किसान के करम के फल ल मनखे मन कचरा पेटी, सड़क, नाली म फेंक देथें। रद्दा म परे परे कतको झन के जूता चप्पल अउ गाड़ी घोड़ा म हमला रमजाना पऱथे। ऐ अरथ म मनखे मन हमन ल कतका दुख पीरा पहुंचावत हो।
लिमव के गोठ ल बीच में टोंकत मिरचा हर बोलिस- लिमव भइया मनखे मन के तो आदतेच आय काम निकलत ले मीठ मीठ अउ काम निकलगे तहां करू करू। अपन सुवारत ल साधे खातिर जीव जन्तु ल बली देहे म तको दया नइ करंय। मे तो किथों पढ़े गुने मनखे मन ल अंधबिसवास म पड़े के छोंड़ मेहनत के मरम ल समझना चाही। लिमउ मिरचा लटका दे हे म सदगति नइ मिलय। सदगति तभे मिलही जब मनखे मन जीव जन्तु के उपर दया करहीं। अपन कमाइ के पाइ पाइ ल दीनहीन, गरीब असहाय मनखे मन के सेवा साधन कस सही काम काज म लगाहीं।
हां मिरचा बहिनी बने कहथस। लिमउ हर थोरकिन जोरहा हुंकारू मारत बोलिस – अरे लिमउ मिरचा लटका देहे म चार के चैसठ नइ मिल जाय। मोर तो इही कहना है कि लिमउ मिरचा रोज संझा बिहिनिया खरीदव, काबर कि ऐखर बेचोइया के इही हर जीये के सहारा आय। फेर खरीदे लिमउ मिरचा ल दूवारी म टांगना छोड़ दव। अउ ऐला कोनो गरीब मजदूर ल दान दे दव। ऐखर से दू झीन ले आसीस मिलही। पहिली तो जउन हर लिमउ मिरचा बेचत हे तेकर अउ दूसर जउन गरीब ल एला तुम दान देहू, ओखरो से आसीस मिलही। अउ तुमन ल ये सोंच के सांति तको मिलही कि हम अपन कमाई ल बने काम म लगाय हन। कइसे मिरचा बहिनी बने कहथों न ।
हां हां लिमउ भइया सही कहथस। मनखे मन ल अपन सोंच ल बदलना चाही। मिरचा ह गुर्रावत बोलिस- अरे थोरकिन आंखी ल तो खोल के देखव। दुनिया कहां ले कहां पहुंच गे हवय। अउ तुमन लिमउ मिरचा टांग के अपन समय, पइसा ल गवांवत अपन मन ल कमजोर बनावत हो। जम्मो झन आंखी खोलव अउ बता दव कि – छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, अंध बिसवास के चक्कर म पढ़ही ते बनही पक्का कोढ़िया।
लिमउ अउ मिरचा के गोठ ल सुनत सुनत अंजोर होगे रइस। मे हर ओ मन से बिदा ले के घर कोती लहुटत रेहवं। त देखवं की एक झिन डोकरी दाई हर सड़क म परे लिमउ अउ मिरचा ल बीनत बीनत अपन टुकनी म सकेलत जावत हे। अउ बीच बीच म मुच मुचावत हांसत तको हे। ऐला देख के मेहर ओखर तीर म जाके पूछेंव- सड़क म फेकाय, रमजाय लिमउ मिरचा ल सकेल के काय करथस ओ दाई ?
तब ओ दाई हर बताइस कि ऐला धोके सुखो देथो अउ तहां ले सांग बघारे के संग म फोरन देथोे । आमा, आवंरा, करोंदा के चटनी संग पीसथों अउ अड़बड़ मजा लेवत हमन माई पिल्ला ऐला खातन। ओखर गोंठ ल सुन के मोर आंखी फाट गे। मे हर पूछेंव फेर लिमउ मिरचा ल बीनत बीनत मुचमुचावत हांसथस काबर ? मोर सवाल सुनके ओ हा ठठाके हांसीस अउ बोलिस- असल म लिमउ मिरचा कस कीमती जीनिस ल फेंकोइया मन के बुद्धि उपर मोला हंासी आ जाथे। अइसे लागथे जानो मानो अइसन मनखे मन के अकल म पथरा परगे हे अउएमन अकल के दुसमन बनगे हवंय। ष्
महतारी संग गोठ बात ल आगू बढ़ावत मे हर पूछेंव – कस ओ दाई, लिमउ मिरचा ल तो फेकोइया मन भूत, प्रेत अउ जादू टोना भगाय के टोटका करके फेंके रहिथे। ऐला बीन के खाय म डर नइ लागय? मोर ए सवाल ल सुनके डोकरी दाई फेर मुचमुचाईस अउ बोलिस- अइसे हे बेटा, मेहर तो इमानदारी ले मेहनत, मजूरी करथो। किंजर किंजर के रद्दा म पड़े लिमउ मिरचा ल बीनथो। काखरो संग लूट खसोट, चोरी चमारी तो नइ करंव। इमानदारी से काम करोइया मनखे के तो भगवान ह तको कुछु नइ बिगाड़ सकय। त भला भूत, परेत के टोटका हर मोर का बिगाड़ही। तें अब बात बात म मोला झन बिल्होर अपन काम ल करन दे।
अतका सुने के बाद मेहर डोकरी दाई के गोड़ ला छूके पांव परेंव अउ मने मन म सोंचत घर लौटेंव कि लिमउ हर काली माई दुरगा दाई के गहना आये, कतको पूजा पाठ म चढ़ावा तको चढ़थे, अइसनेहे मिरचा हर अमीर गरीब के निवाला के स्वाद बढ़ोइया आय। अइसन जीनिस ल फेंकना अपन पांव म टंगिया मारना कस बूता आय।
विजय मिश्रा ‘अमित’
अतिरिक्त महाप्रबंधक(जनसम्पर्क)
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