इलाज के बिना मासूम लइका मन के जावत हे जान, सरकारी योजना बर तरसत हे ये गांव
देबाशीष बिस्वास@कांकेर. कोयलीबेड़ा ब्लाक के ग्राम पंचायत माचपल्ली के आश्रित नक्सल प्रभावित गाँव पोरियाहूर म कुपोषण के चलते पाँच साल के मासूम बच्ची कुमारी लक्ष्मी पददा के एक महीना पहली 28 मई के मौत होगे।
पोरियाहूर गाँव ह पखांजुर मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर जंगल के बीच स्थित हे। जिहां कुल 13 आदिवासी परिवार म 80 सदस्य निवास करथें। गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करइया ये गाँव के लोगन तक सरकार के कोई भी योजना आज तक नई पहुंच पाए हे।
स्वास्थ्य सुविधा के नाम ले इहाँ न तो मितानिन हे, न तो आंगनबाड़ी ह ठीक से चलत हे। प्राथमिक उपचार के लिए बेबस ग्रामीण मन ल उफनावत नदिया ल पार करके संगम म बने उपस्वाथ्य केंद्र तक पहुंचना परथे। सड़क नइ होय के कारन उखंर रस्ता हर बहुत कठिन हो जाथे। गाँव म अभी भी कतको लइका मन कुपोषित हें, जेमन इलाज के अभाव म दम तोड़त जात हें।
एखर पहली भी कुपोषण के मामले म पोरियाहू गाँव ह खबर मन के सुर्खी म रहे हे। एखर वावजूद प्रशासन ह मासूम लइका मन के स्वास्थ्य म कोई ध्यान नई दिस। एखर कीमत 5 साल के मासूम बच्ची लक्ष्मी ल अपन जान देके चुकाए बर पडिस। गाँव म दर्जनभर कुपोषित बच्चा हें, जेमा 2 झन के स्थिति बेहद नाजुक हे।
जब लइका मन के परिजन मन ले बात करे गिस, तब ओमन जउन बात बताइन वो हर चौंकाने वाला रिहिस। ओमन प्रसासन के प्रति नाराज़गी जतावत किहिन कि ये गाँव म न तो स्वस्थ्य सुविधा हे, न ही बिजली, सड़क, पानी, शिक्षा या स्वच्छता के इंतजाम हे। यहां के ग्रामीण मन लोकतंत्र के हर पर्व म अपन वोट ये उम्मीद ले देथें कि अवइया सरकार ह उंखर गाँव के तस्वीर बदलही। फेर तस्वीर तो दूर उंखर वोट ले सत्ता के सिंहासन म बइठने वाला नेता मन उंखर मन से मिले बर घलो नइ पहुंचे। इहां के बच्चा मन के पेट फूले हुए हे अउ शरीर म गहरा घाव हे। ये मन ल प्राथमिक इलाज़ तको नसीब नइ हो पात हे। इहां सरकार और प्रशासन के आला अधिकारी गिद्ध बनके ये मासूम लइकामन के मौत के इंतेज़ार करत हें। इहाँ चारों ओर गंदगी का आलम हे। स्वच्छ भारत के ढोल पीटइया सरकार के शौचालय इहां बनेच नइ पाए हे।
कुपोषण के संगे-संग इहां महामारी भी अब तक कतको जान ले चुके हे। सबले आश्चर्य के बात ये आए कि ये गाँव म होय मौत की जानकारी घलो शासन के नुमाइंदा मन ल नइ होवय। 15 साल बाद प्रदेस म सरकार बदलिस, लेकिन ये गाँव की तस्वीर अब तक नइ बदल पाए हे। एक बार फेर बारिश आ चुके हे, एक बार फेर इहाँ के लोगन के ज़िंदगी नरक बनने वाला हे। फेर कतको जिंदगी ईलाज़ अउ सड़क के अभाव म दम तोड़ना वाला हे। अउ एक बार फेर सरकार और अधिकारी मन ये बेबस लोगन ले मुँह फेर के कुम्भकर्णीय नींद सूते बर तैयार हें। अगर प्रशासन बेबस ग्रामीण मन के ओर मदद के हाथ बढ़ातिस शायद मासूम लक्ष्मी जइसे कतको लइका मन अपन माता-पिता के गोद म खेलत रहितिन। लेकिन शासन के लापरवाही के चलत इहाँ कतको मासूम ज़िंदगी खिले के पहिले ही मौत के नींद सो जाथें ।