छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा और बस्तर की भाषा-बोली के पाठ्यक्रम को समुदाय आधारित बनाए: राजेश सिंह राणा
रायपुर। छत्तीसगढ़ शासन की मंशानुरूप राज्य में छत्तीसगढ़ी और आदिवासी क्षेत्रों में बोली जानी वाली आदिवासी भाषा को कक्षा पहली से पांचवीं कक्षा तक के पाठ्यक्रम में एक विषय के रूप में शामिल किए जाने हेतु आज दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ।
राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद में गोंडी भाषा के लिए पाठ्य पुस्तक के निर्माण हेतु इस कार्यशाला का शुभारंभ एससीईआरटी के संचालक राजेश सिंह राणा ने किया। कार्यशाला की अध्यक्षता अतिरिक्त संचालक श्री जे.पी. रथ ने की। इस अवसर पर भाषाविद् डॉ. चितरंजन कर और श्री महेंद्र मिश्रा भी उपस्थित थे।
राजेश सिंह राणा ने कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की घोषणा के अनुसार बच्चों को उनकी बोली-भाषा पढ़ाये जाने के लिए पाठ्य सामग्री तैयार करना है। यह पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो प्रचलन और बोलचाल में आए। कार्यशाला में गोंडी भाषा-बोली में पाठ्यपुस्तक के लिए विषय सामग्री का चयन और लेखन किया जाना है। गोंडी भाषा की संस्कृति, पुरोधा साहित्यकारों की रचनाओं को पाठ्यक्रम में स्थान देना है। पाठ्यक्रम में छत्तीसगढ़ की संस्कृति, लोक परंपरा की झलक और क्षेत्रीय अनुभव का भाव दिखना चाहिए। उन्होंने छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा और बस्तर की भाषा-बोली के पाठ्यक्रम को समुदाय आधारित बनाए जाने पर जोर दिया।
अतिरिक्त संचालक जयप्रकाश रथ ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि मातृ भाषा का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है। यह समुदाय आधारित कार्यशाला है, जिसमें पाठ्यपुस्तक के निर्माण में समाज के विभिन्न सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर घोषणा की गई थी कि जिन क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ी भाषा बोली जाती है, वहां छत्तीसगढ़ी भाषा और आदिवासी क्षेत्रों में वहां की स्थानीय बोली को कक्षा 1 से 5वीं तक के पाठ्यक्रम में एक विषय के रूप में शामिल किया जाना है। रथ ने कहा कि छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा, सादरी, गोंडी, हल्बी और कुडुख इन 6 भाषाओं में कक्षा 1 से 5 वीं कक्षा तक के लिए पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक तैयार करना है।