अईसन भक्ति अऊ कहाः मिलव एक अईसे समुदाय ले जेखर रोम-रोम म बसथे प्रभु श्रीराम
रामनामी संप्रदाय के दुर्लभ पुरखौती, गोदना ले करथे भगवान राम के भक्ति, पूरा शरीर म लिखाथे राम
-डॉ. ओम प्रकाश डहरिया
आज के बेरा म टैटू यानि गोदना ह फैशन बन गे हे। एक गोदना म कोनों अपन पसंद के शब्द ल लिखाथे त अपन नई ते जेन ले मया होथे ओखर नाम ल लिखवाथे। जुन्ना बेरा म कुछ मनखे मन शरीर के कुछ हिस्सा म गोदना गोदावत रिहिस फेर भारत म सुरू ले ए गोदना के प्रथा ह सीमित दायरा म रहय। एखर ले अलग छत्तीसगढ़ म एक अईसे समुदाय घलो हे जेन ह अपन राम भक्ति म अईसे रच-बस गे कि अपन पूरा शरीर म राम नाम के गोदना गोदवाथे। उहें ओखर मन के कपड़ा घलो राम के नाम लिखे होथे। पुरखौती ले ए समुदाय ह अपन ए भक्ति के निर्वहन करत आत हे।
हमन बात करत हन रामनामी संप्रदाय के जेन अपन जम्मो जिनगी ल राम के रंग म रंग ले हे। अपन जम्मो जिनगी राम के भक्ति म लीन कर दे हे। ओखर मन के मानना हे कि भगवान के भक्ति के बिना ओखर जिनगी अधूरा है। सच्चा भक्त के खोज भगवान ल घलो होथे। छत्तीसगढ़ म एक बात ह प्रचलित हे कि हरि के नाम ते भज ले मनखे, पाछू तैं पछताबे जब प्राण छूट जाही। रामनामी संप्रदाय के हिस्सा म ए पछतावा के कोनों जगह नई हे। काबर कि ओखर मन के हर पल शरीर के हर हिस्सा राम नाम म लिप्त हे। न केवल राम के नाम बल्कि ओखर आचरण ल घलो अपन जीवन म उतारे की परंपरा के निर्वहन करत हे। जईसन भगवान राम सुंदर मोर पंख धारण करथे वईसने मन के सुंदरता घलो ओखर मन के भीतर हे। भगवान श्रीराम के नाम ओखर आदर्श मन ल निर्मल रखथे अऊ मयूर जईसन सुंदर मन ले ओमन प्रभु के भक्ति में लीन रहिथे।
रामनामी समुदाय के बसेरा घलो उही कोती हे जिहां ले भगवान के चरण गुजरे रिहिस। जेन ल आज छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ह श्रीराम वन गमन पथ के रूप में विकसित करत हे। ए समुदाय के बसेरा जांजगीर चांपा, शिवरीनारायण, सारंगढ़, बिलासपुर के भंडार (पूर्वी क्षेत्र) म हे। अधिकतर एमन नदी किनारा रहिथे। भगवान श्रीराम अपन वनवास के बेरा म महानदी के किनारा ल होके गुजरे रिहिस अऊ हो सकथे कि ए इलाका म रहवईया मन भगवान ले प्रभावित हो गे रिहिस होही। जेखर सती ओमन राम भक्ति म रम गे हे।
छत्तीसगढ़ के रामनामी संप्रदाय के रोम-रोम म भगवान राम बसथे। का तन का मन सबो म भगवान राम के नाम हे। ए समुदाय बर राम सिरिफ नाम नोहे बल्कि ओखर संस्कृति के एक अहम हिस्सा हे। ए राम भक्ति मन रामनामी कहलाथे। राम के भक्ति एखर मन के अंदर अईसे हे शरीर के हर हिस्सा म राम के नाम ल गोदना के रूप म गोदवाथे। बदन म रामनामी चद्दर, सिर म मोरपंख के पगड़ी अऊ घुंगरू रामनामी मनखे मन के पहचान माने जाथे। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के भक्ति अऊ गुणगान ह एखर जिनगी के एके मक्सद हे। ए संप्रदाय के पांच प्रमुख प्रतीक हे। ए हरे भजन खांब या जैतखांब, शरीर म राम-राम के गोदना, सफेद कपड़ा ओढ़ना जेमा काला रंग म राम-राम लिखे होथे अऊ घुंधरू बजात भजन करना, मोर पंख के मुकुट पहिरना। एमन कहिथे कि श्रीराम भक्त मन के अपार श्रद्धा ह कोनों भी सीमा ले उपर हे। प्रभु के विस्तार हजार हजार पीढ़ी ले भारतीय जनमानस म व्याप्त हे।
बता देन कि छत्तीसगढ़ के पूर्वी अऊ मैदानी क्षेत्रों म सतनाम पंथ के अनुयायी सतनामी समाज के लोगन मन बड़ संख्या म निवास करथे। पहिली के बेरा म जब समाज म कई कुरीति व्याप्त रिहिस त मंदिर म ओखर मन के प्रवेश प्रतिबंधित रिहिस। अईसे बेरा म सतनामी समाज के ही एक सदस्य वर्तमान म जांजगीर-चांपा जिले के अंतर्गत ग्राम चारपारा निवासी परशुराम ह रामनामी पंथ शुरू करे रिहिस अईसे मान्यता हे। जेखर समय बछर 1890 के आस-पास माने जाथे।
रामनामी समाज के अनुसार शरीर म राम-राम शब्द अंकित कराए के पाछू ए शाश्वत सत्य ल मानना हे कि जनम ले लेके अऊ मौत के बाद जम्मो देह ईश्वर ल समर्पित कर देना चाही। जब हमार मृत्यु होथे त राम नाम सत्य हे के पंक्ति ले अंतिम यात्रा म शरीर आगे बढ़थे। इही उद्घोष ले शरीर र राख म परिवर्तित होथे। अऊ रामनामी समुदाय के लोगन म ए शरीर ह हाड़ मांस रूपी देह मानथे अऊ एला प्रभु राम के देन मानथे।
राम ल अपन ईष्ट देव मानके रामनामी जीवन मरण ल जीवन वास्तविक सार ल ग्रहण करथे। इही वास्तविकता ल मानके समाज के लोगन मन जम्मो शरीर म गोदना अंकित कर अपन भक्ति भाव ल राम ल समर्पित करथे। छत्तीसगढ़ म लोक पंरपरा हे कि बड़का-छोटका, रिस्ता-नाता ल सम्मान दे बर बिहनिया हो या संझा या रात के बेरा हो राम-राम शब्द के नाम के अभिवादन करे जाथे।
रामनामी अहिंसा म विश्वास रखथे, सत्य बोलथे अऊ सात्विक भोजन करथे। सतनाम पंथ के लोगन मन सतनाम के आराधना करथे उहें रामनामी राम के आराधना करथे। संतनाम पंथ के संस्थापक संत गुरू घासीदास बाबा ह कहे रिहिन कि ‘अपन घट के ही देव ला मनइबो, मंदिरवा में का करे जइबों शब्द ले अपन शरीर ल मंदिर मानके ओखरे पूजा अराधना के विचार ल बदले के बात कहे रिहिन। उहें रामनामी संप्रदाय के लोगन मन घलो मंदिर अऊ मूर्ति के बजाय अपन रोम-रोम म राम लिन अऊ अपन तन ल मंदिर बना लिन। अब समाज के जम्मो लोगन मन ए परंपरा ल निभावत आत हे। इही आज एखर मन के पहचान बन गे हे।