19 जुलाई जयंती म सुरता: कब पूरा होही डॉ. खूबचंद बघेल के सपना…?
सुशील भोले, आदि धर्म जागृति संस्थान, रायपुर
छत्तीसगढ़ के कल्पना तो सोलहवीं शताब्दी के साहित्य मन म मिलथे, फेर एकर नांव म जमीनी बुता 28 जनवरी 1956 के दिन नांदगांव म होए ऐतिहासिक “छत्तीसगढ़ी महासभा” के रूप म होइस. ए महासभा डॉ. खूबचंद बघेल के चिंतन-मनन अउ ठोसलग बुता करे के परिणाम स्वरूप आय. उन जतका जबर राजनीतिक रिहिन हें, वतकेच जबर एक लेखक अउ साहित्यकार घलो रिहिन हें. एक चिंतक स्वभाव के साहित्यकार ही ह अस्मिता आधारित राज्य के कल्पना कर सकथे.
नांदगांव के छत्तीसगढ़ी महासभा जिहां दाऊ चंद्रभूषण दास जी के देखरेख म होइस, उहें ए अधिवेशन के पहिली सत्र के पगरइति बैरिस्टर मोरध्वजलाल श्रीवास्तव जी करिन, त दूसर सत्र के पगरइति हमर पुरखा साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी करिन. ए जुराव म बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव अउ द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ जइसन साहित्यिक पुरोधा मन घलो रिहिन. ए ह ए बात के चिन्हारी आय, के अलग छत्तीसगढ़ राज के परिकल्पना अउ एकर खातिर जम्मो जमीनी उदिम म साहित्यकार मन के सबले बड़का अउ पोठ योगदान हे.
ए महासभा के बेरा डॉ. रामलाल कश्यप जी प्रश्न करे रिहिन हें – ‘छत्तीसगढ़ी कोन आय?’ तब डॉ. खूबचंद बघेल जी उनला कहे रिहिन हें- ” जेन छत्तीसगढ़ के हित ल अपन समझथे, छत्तीसगढ़ के मान-सम्मान ल अपन मान-सम्मान मानथे तेनेच ह छत्तीसगढ़ी आय.”
डॉ. खूबचंद बघेल जी के चिंतन अस्मिता ऊपर आधारित रिहिसे तेकर सेती उन भाखा, संस्कृति, कला अउ परंपरा के बढ़ोत्तरी करना चाहत रिहिन हें, एकरे सेती उन हिन्दी, संस्कृत, अंगरेजी अउ मराठी भाखा के जानकर होए के बाद घलो इहाँ के महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म ही अपन रचनात्मक कलम ल चलाइन. इही सब बात ल देख के हमर जइसे नेवरिया लिखइया मन घलो ए अस्मिता ऊपर आधारित राज के कल्पना ल साकार करे के उदिम म भीड़े रेहेन.
वइसे तो मैं मानसिक रूप ले एकर नान्हेपन ले समर्थक रेहेंव, फेर मैदानी रूप म सन् 1983-84 ले संघरेंव. हमन इहाँ के छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति संग जुड़े राहन अउ हमर पुरखा साहित्यकार हरि ठाकुर जी एमा बनेच रमे राहंय, उंकरे कहे म हमूं मन जुड़ेन. तब मैं अपन नांव ल सुशील वर्मा लिखत रेहेंव. बाद म आध्यात्मिक साधना म आए के बाद गुरु के आदेश ले वर्मा के जगा भोले लिखे के चालू करेंव.
छत्तीसगढ़ राज बने के पहिली जब डॉ. खूबचंद बघेल सरगधाम के रद्दा रेंग दिन, त हरि ठाकुर जी उंकर बारे म लिखे रिहिन- “एक बीमार छत्तीसगढ़ के कुशल डॉक्टर ह छत्तीसगढ़ ल बीमार छोड़ के चल दिस. छत्तीसगढ़ राज के सपना ल अपनेच मन म लेके चल दिस. आज जब वोकर सपना पूरा होवत हे. (1 नवंबर 2000 के राज निर्माण के बाद) छत्तीसगढ़ राज बनगे हवय त छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति, साहित्य अउ कला ल ऊंचा उठाना हे, तभे उंकर सपना पूरा होही.”
आज जब छत्तीसगढ़ ल अलग राज बने कोरी भर बछर ले आगर होगे हवय, त वो पुरखा मन के अस्मिता ऊपर आधारित राज के सपना ह अधूरा बरोबर जनाथे. आज छत्तीसगढ़ ह बाढ़त तो हे, फेर क्रांकीट के जंगल के रूप म बाढ़त हे. खेत-खार, डोंगरी- पहाड़, जंगल-झाड़ी दिनों दिन कमतियावत हावय. संस्कृति के सबले जादा दुर्दशा दिखथे. खास कर के अध्यात्मिक संस्कृति, परब, उपासना अउ जीवन पद्धति के. जम्मो डहर आने- आने देश राज के संस्कृति मन अलग अलग रूप खापे अतिक्रमण करत हें.
आज डॉ. खूबचंद बघेल के एक अलग राज के सपना तो पूरा होए हे, फेर ए ह सिरिफ एक अलग नक्शा के रूप म, एक अलग भाषायी अउ सांस्कृतिक इकाई के रूप म नहीं. तेकरे सेती एक साहित्यकार के अंतस ले ए उद्गार निकल परथे-
राज बनगे राज बनगे, देखे सपना धुआँ होगे,
सुशील भोले
चारों मुड़ा कोलिहा मनके, देखौ हुआँ हुआँ होगे।
का-का सपना देखे रिहिन पुरखा अपन राज बर,
नइ चाही उधार के राजा हमला सुख सुराज बर।
राजनीति के परिभाषा लगथे महाभारत के जुआ होगे।
तिड़ी-बिड़ी छर्री-दर्री हमर चिन्हारी के परिभाषा,
कला-संस्कृति सबो जगा चील कौंवा के होगे बासा।
बाहिर ले आए मन सतवंतीन, अउ घर के परानी छुआ होगे।
आज डॉ. खूबचंद बघेल जी के जयंती के बेरा म अतके आसरा हावय, के उंकर अस्मिता आधारित राज के सपना खंचित पूरा होवय. हमर राज के खेल-कूद, खान-पान, पहिरावा-ओढ़ावा, परब-तिहार, पूजा-उपासना अउ जीवन पद्धति सब के स्वतंत्र चिन्हारी बनय. हमला कोनो आने डहर के पोथी-पतरा संग संघेरे झन जाय.
अभी के सरकार ह ए मुड़ा म थोकिन बुता तो करत हे, फेर एला भरपूर नइ कहे जा सकय. अभी घलो इहाँ के महतारी भाखा ह शिक्षा अउ राजकाज के भाखा नइ बन पाए हे. राजभाषा आयोग तो अभी तक अदियावन लइका बरोबर अकेल्ला परे हे. भरोसा हे, जिम्मेदार लोगन के चेत अइसन मूल अउ पोठलग बुता डहार जाही.
पुरखा ल उंकर जयंती के बेरा म पैलगी जोहार