सुरताः मस्तुरिहा के फटफटी म चटपटी गोठ.. लक्ष्मण मस्तुरिहा के जन्म दिवस 7 जून म बिसेस
विजय मिश्रा ‘अमित’, पूर्व अति. महाप्रबंधक
बात 1989 बझर के आय। में हर राजनांदगांव के सर्वेसर दास म्यूनिसिपल हाई स्कूल में उच्च श्रेणी शिक्षक के पद म सेवारत रेहेंवं। तब मोर निवास दुरूग हर रहिस। ते पाय के रोज दुरूग ले राजनांदगांव बस म आना जाना करंव। मोला रोज दुरूग के कचहरी बस अड्डा म बस मिलय। सनिचर के दिन बिहनिया स्कूल लगय बाकी दिन 12 बजे ले लगय।
एक घंव सनिचर के दिन बड़े फजर कचहरी बस अड्डा म बस के अगोरा म खडे़ रहेवं। आधा घण्टा हो गे रहिस,फेर एको ठिन बस नइ आइस। तब मोर धुकधुकी बाड़े लागिस। काबर कि समय म स्कूल नइ पहुंचे म प्रिंसीपल साहब के नाराजगी तो सहना पड़तीस संगे-संग आधा दिन के छुट्टी तको जातीस।
बस आ जाये भगवान, बस आ जाये भगवान कहत कहत ओ बेरा म मेहर जेती ले बस आवय ते कोती ला टकटकी लगाए निहारत रेहेंवंव। फेर दूरिहा दूरिहा तक बस के झलक नइ मिलत रइस। चिन्ता के लकीर मोर माथा म उबरे लागीस। ओ जमाना म मोबाईल तको नइ रहिस कि काहीं कुछु खबर स्कूल में दे पातेंव।
भगवान भरोसा म बस के अगोरा में रहेंव, तभे पान ठेला वाला ह बताइस- गुरूजी आज बस वाला मन के हड़ताल हे। बस नइ चलय। पान ठेला वाले के बात ल सुनके मोर आंखी के आगू म अंधियार छा गे। अब का कारंव, का कारंव सोंचत रहेंव तभे एकझिन हेलमिट पहिरे फटफटी वाला ल अपन कोती आवत देखेंव। त ओला हाथ दे के रोके के इसारा करेंव। ओ बिचारा ह गरक ले बिरिक मार के फटफटी ल रोक दीस। में हर बिना देर करे राजनांदगांव जाना हे भइया कहत ओखर हाॅ ना सुने बिना फटफटी के पाछूं म बइठ गेंव। ओहू हर तको कहीं कुछु पूछे कहे बिना फटफटी ल आगू रेंगा दीस।
थोरकिन आगू गेन त ओ फटफटी वाला ह पूछीस- मोला नइ पहिचानें का विजय भाई ? ओखर ये सवाल संग अवाज ल सुनके में हर तुरते पहिचान डारेंव की फटफटी वाला हर लक्ष्मण मस्तूरिया आय। काबर की हमन चंदैनी गोंदा के सर्जक रामचन्द्र देशमुख जी के लोकनाट्य ‘‘कारी’’ अउ जाने माने लोकगायिका कविता वासनिक के संस्था ‘‘अनुरागधारा’’ में एके संग कइ बछर ले काम करे रहेन। ते पाय के हमर बने जान पहिचान रहिस। में हर तुरते हांसत हांसत बोलेंव- लक्ष्मण भाई हेलमेट पहिरे हस अउ उपर ले बुलेटकस फटफटी म चघे हस ते पाय के पहिचानें में चूक हो गे। फेर लक्ष्मण भाई तोर कोयली कस गुरतुर बानी ल भला मे ह कइसे नइ जानहॅू।
तब लक्ष्मण भाई बोलिस- बने कहे विजय भाई। मनखे तो मनखे, चिरई चिरगुन अउ जनावर मनके बोली हर तको उॅंखर पहिचान होथे। फेर बदलत बेरा म मनखे हर कोलीहा कस चतुरा होगे हवय। अपन बोली भाखा ल अपन मतलब अउ फायदा ल देख देख के बदलत रहिथे। अउ अइसनेहे कोलीहा दिमाग के मनखे आज बड़े पद अउ पुरसकार ल पावत जात हें। हमर तोर कस सिधवा मन ये सब ल देख देख के मने मन म चूरत रहिथन।
बने कहथस लक्ष्मण भाई। मे हर हुंकारू भरत ओखर बात ला आगू बढ़ावत बोलेंवं- आज के बेरा म गुनोइया, गियानी अउ पानीदार मनखे ले जादा चापलूस अउ मीठलबरा मनखे के पूछारी दुनिया म होवत हे। ए बात ल छत्तीसगढ़ के नामी नाट्ककार प्रेम साईमन जी हर तको लिखे हावय कि- अब ईनाम अउ मान पाय खातीर मनखे के दिमाग ल कोलीहा कस अउ मुंहु ल सुरा कस होना चाही।
अइसनेहे गोठ बात करत करत हमन जात रेहेन तभे रद्दा म एकझिन डोकरी दाई हर हाथ म लौठी धरे अउ मुड़ म मोटरा बोहे धीरे धीरे रेंगत जावत दीखीस। हमर फटफटी के आवाज ल सुनके ओ हर पाछू कोती पलटीस अउ रोके के इसारा अपन हाथ म करीस। एला देख के लक्ष्मण भाई हर फटफटी ल रोक दीस। तब ओ डोकरी दाई हर बोलिस- मोला सोमनी गांव तक जाना हे,अउ रोगहा बस वाले मन हाआवत नइहे । रेंगत रेंगत मोर पांव म छाला पर गे हे। तोर फटफटी म बइठ के चल देते कहिके रोकें हवं बेटा। फेर तुमन तो दू झन बइठे हो। दूरिहा ले मोला एकझिन दिखेस, ते पाय के रोक पारेंव।
ले काहिं नइ होये दाई। लक्ष्मण भाई हर बोलिस- तहूं ला बइठार लेतेंव।फेर तोर करा मोटरा तको हे। फटफटी म ऐला राखत नइ बनही। अउ मोर संग बइठे विजय भाई हर,गुरूजी आय। ओला अपन बेरा म स्कूल तको पहुंचना हे। नइ त एला उतार के तोला बइठार लेतेंव दाई। लक्ष्मण भाई के गोंठ ल सुनके डोकरी दाई हर मोर कोती अंगरी देखावत तुरते बोलिस- अरे.. ये हर मास्टर आय त, तुमन रूकव झन। तुरते जावव बेटा।काबर की लइकामन के पढ़ई-लिखई नइ छूटना चाही। मोर का हे, मे ह तो धीरे धीरे रेंगत रेंगत अपन गांव पहुंचे जाऊं।
तब लक्ष्मण भाई ह अपन कमीज के उपर जेब म राखे एक ठिन दस के नोट ल निकाल के ओ डोकरी दाई ल दीस अउ दोनो हाथ ल जोड़ के पैलगी करत फटफटी ला आगू रेंगा दीस। भागत फटफटी ले मिलत ठण्डा हवा ल खावत मेहर बोलेंवं- लक्ष्मण भाई,डोकरी दाई ह लइकामन के पढ़ई-लिखई के कतका संसो करत हे। एला देख सुनके मन ह गदगद हो गे। तब लक्ष्मण भाई ह बोलिस- विजय भाई,डोकरी दाई हर नारायण लाल परमार जी के लिखे एहू संदेसा ला दीस हावय कि- ‘‘तिपे चाहे भोभंरा, झन बिलमव छांव म, जाना हे हमला ते गांव अभी दूरिहा हे’’। माने अपन ठीहा मंजिल ल पाय बर रद्दा म रूकना नइ हे, बल्कि दुख पीरा ल सहत सहत रेंगते रहना हे। तभे ठिकाना मिलही।
लक्ष्मण भाई के बात पूरा होवत होवत हमन राजनांदगांव मोर स्कूल के दुवारी म हबर गेन। ओखर फटफटी रूक गे। मेहर फटफटी ले उतर के ओला जय जोहार बोलेंव। अउ अइसनेहे बेरा कुबेरा में सदा दिन संग देहे बर केहेंव त ओ हर जोर से हांस के बोलिस- मोर संग चलव रे,मोर संग चलव गा,गीरे थके हपटे मन। अउ अपन फटफटी ला फेर आगू बढ़ा दीस।ओला राजनांदगांव के आगू तुमड़ीबोड़ गांव जाना रहीस। लक्ष्मण भाई ला दूरिहा तक जावत लें देखेवं। ओखर फटफटी ले निकलत फट-फट-फट-फट आबाज ला सुनत गुनगनाय लागेंव- भारत माॅ के रतन बेटा, बढ़िया हवं मैं छत्तीसगढ़िया अवं ।