छत्तीसगढ़ी भाखा ले स्कूल मन म नइ होवत हे पढ़ाई
सुधा वर्मा
छत्तीसगढ़ राज्य ल बने 18 बछर होगे हे पर अभु तक छत्तीसगढ़ी भाखा स्कूल मन म नइ पहुंच पाइस हे। ये सरकार के कमजोरी हे। अइसे कउन प्रांत हे जिहां उहां के भाखा म पढ़ाई नइ करे जात हे? जे भाखा के व्याकरन 1885 म हिंदी ले पहिली ले लिखे गेहे, ओला बोली -बोली बोलके हटाना चाहत हे।
आज के अध्यक्छ एक बेर कहिन के भाखा हे दूसर बेर ये मा बहुत कमी बता दिस। जब कारयकाल समाप्त होवत हे, तब मानकीकरन के बात करत हे। पद म आय के पहिली बड़े- बड़े बात करत रहिन हे, ओकर के बाद आठवीं अनुसूची के बात कर के घुमाय लगिस हे। राजभाखा आयोग ल समाप्त कर देना चाही। अतका पइसा ये मा काबर खरच करत हे। आज पुस्तक मन बर अनुदान देय जात हे। जब अनुदान नइ मिलत रहिस हे तब घलो लोगन पुस्तक मन छपवात रहिन हे।
मै येकर पहिली दूनों अध्यक्छ ले बात करेव। श्यामलाल चतुर्वेदी ह कहिन के मैं कुछु नइ कर सकत हव,दानेश्वर शर्मा ह कहिन के उंखर तीर पावर नइ हे। मैं साक्छात्कार लेव तभु बताय रहिस के हमन कारयक्रम करवा सकत हन। पर भाखा ल लागू नइ कर सकत हन। येकर ले सवाल उठथे काबर बनेय गेहे ये आयोग ल?
पहिली छत्तीसगढ़ी पुस्तक मन बर अनुदान देय जात रहिस हे। फेर अपन परिचित मन ल देय बर नियम बदल दे गिस । छत्तीसगढ़ उपर लिखे हिंदी किताब मन बर घलो अनुदान देय जात हे। सारे मापदंड केवल हमार भाखा बर हवय।
मंच म घलो उही व्यक्ति होथे जेला अध्यक्छ पसंद करत हे। योग्यता के कोनो मायने नइए।अभु मानकीकरन म ही दिखाइ दिस। छांट छांट कर लोगन ल कारड भेजे जात हे।
ये लोगन ह हमन ल घुनघुना पकड़त हे। येला सफेद हाथी घलो कही सकत हन, जेला मुफ्त के खिला के पाले जात हे। काम का हे? भाखा बर साहित्य चाही, ये सही हे । पुस्तक प्रकासन घलो सही हे, पर येला पढ़ही कउन? कोनो के रुचि हे? बहुत लोगन के कहिना हे के पढ़ नइ सकन? जब तक पढ़ाही नइ त तब तक पढ़ही कइसे?
कभु एक समाचार आइस यदि “शासन अउ राजभाषा आयोग के आपसी सामंजस्य ठीकठाक रहही त आघू सत्र म छत्तीसगढ़ी माध्यम हो जाही।”
राजभाषा आयोग एक कक्छा के पुस्तक के अनुवाद बर दस हजार रुपिया रखे हैं। ये उही म तइयार होही। मै जानत हव ये स्वीकार नइए। अभु छत्तीसगढ़ी पढ़ाय के कोनो योजना नइए । ये समाचार हम लोगन बर एक लालीपॉप हे। ये नवभारत म 22 जुलाई के छपे समाचार एक प्रश्न खड़ा करत हे।
कुछ लोगन मिलके 52 अक्षर के प्रयोग करे के प्रस्ताव पास कर दिस। एकाएक छत्तीसगढ़ी म एम.ए खोल कर बहुत बेरोजगार तइयार कर दिस। ये बछर 40 सीट बर 40 आवेदन घलो नहीं आइस हे।
राजभाषा आयोग के अगला अध्यक्छ कइसे होही? कवि ,लेखक या फेर शिक्छाविद। तीन तरह के लोगन आइस अउ अपन अपन रंग दिखाइस हे।आखिर राजभाषा आयोग का का कर सकत हे अउ का नइ कर सकत हे। येला जनता ल बताना चाहि। जब भाखा ल आम जनता तक नइ पहुंच सकन त उंकर बर कुछु नइ कर सकन त बंद कर देय जाय। अनुदान दे के काम संस्कृति बिभाग करही। कारयक्रम कर के अउ अपन लोगन ल मंच देके पइसा काबर बरबाद करे जात हे। पठन पाठन सिक्छा बिभाग के जुम्मेदारी हे। जनता के भावना मन के संग न खेलव।