कहिनी: जय समाज गंगा…… परदेशी राम वर्मा
परेम मंडल हा पंडवानी गायक नोहय फेर जिहां चार पांच झन मनखे मन ला एक संग सकलाय देखथे त ये गीत ला टिपलिस उड़ाय बर ढील देथे – ”पांचो पंडो मिले आपस म जुआ के खेल रचाये रामा।“ बुधारू, लखन, सीताराम, चुरामन अऊ रामबगस ल पहिर ओढ़ के सइकिल म जात देखिस तहां फेर सुरू […]
गुने के गोठ: लिमउ अउ मिरचा के पीरा
विजय मिश्रा ‘अमित’ बारहों महीना बड़े बिहनिया किंजरे फिरे के मोर आदत हावय। एखर ले तन ल ताजा हवा अउ मन ल किसिम किसिम के बने बने बिचार तको मिलथे। काली के बात आय मेहर रोज कस बिहिनिया चार बजे किंजरे बर निकले रेहंव। उही बेरा म कखरो सिसक सिसक के रोये के आवाज सुने […]
ठेठरी-खुरमी अउ जोहार…? मूल संस्कृति के एक भावात्मक रूप आय..
सुशील भोले. छत्तीसगढ के मैदानी भाग म प्रचलित संस्कृति म वइसे तो किसम-किसम के रोटी-पिठा बनाए जाथे, फेर ठेठरी अउ खुरमी के अपन अलगेच महत्व हे। इहां के जम्मो तीज-तिहार म इंकर कोनो न कोनो रूप म उपयोग होबेच करथे। एकर असल कारन का आय? सिरिफ खाए-पीए के सुवाद के अउ कुछू बात? असल म […]
भारतीय संस्कार अउ संवेदना ले ओतप्रोत काव्य संग्रह “सहस्त्र धारा” के होईस विमोचन
दुर्ग. मुंबई म रहवईया अऊ दुरुग म बढ़े कवयित्री रजनी साहू के काव्य संकलन “सहस्त्र धारा” के विमोचन करे गिस। समारोह अखिल भारतीय अग्निशिखा मुम्बई के तत्वावधान म दुर्ग स्थित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सभागृह म होईस। ए दौरान जम्मो मन ह ए काव्य संग्रह ल बहुत पसंद करिस। समारोह के अध्यक्षता प्रसिद्ध लघु कथाकार […]
नदा गे हमर झिरिया के पानी.. फेर जागत हे उम्मीद
हमन लइका रेहेन त हमर गाँव नगरगांव ले बोहाने वाला कोल्हान नरवा म गरमी के दिन म झिरिया कोड़ऩ अउ वोमा कूद-कूद के नहावन। सुशील भोले संजय नगर, रायपुर वो लइका पन के उमंग रिहिस हे। फेर आज इही झिरियाह गरमी के दिन म लोगन के जीए के सहारा बनत हे। छत्तीसगढ़ के कई क्षेत्र […]
विशेष लेख: कईसे बहुरहि घुरुआ के दिन…..
खोमेन्द्र देशमुख. छत्तीसगढ़ के ए पुराना कहावत हे कि घुरुआ के दिन घलो बहुरथे…। याने कि अईसन चीज जेखर कोनों महत्व ल नई समझिस तेखर थोड़किन दिन बाद अब्बड़ महत्व ह बाढ़ जाथे। इही हाल अब छत्तीसगढ़ म अब खुदेच घुरुआ के होए बर हे। घुरुआ भर नहीं बल्कि ओखर संग नरवा, गरुआ अऊ बारी के […]
अस्मिता के आत्मा आय संस्कृति…..
सुशील भोले आजकाल ‘अस्मिता” शब्द के चलन ह भारी बाढग़े हवय। हर कहूँ मेर एकर उच्चारन होवत रहिथे, तभो ले कतकों मनखे अभी घलोक एकर अरथ ल समझ नइ पाए हे, एकरे सेती उन अस्मिता के अन्ते-तन्ते अरथ निकालत रहिथें, लोगन ल बतावत रहिथें, व्याख्या करत रहिथें। अस्मिता असल म संस्कृत भाषा के शब्द आय, […]
नवा बछर बर लेख… नवा बिहान के आस
सुशील भोले मुंदरहा के सुकुवा बिखहर अंधियारी रात पहाये के आरो देथे। सुकुवा के दिखथे अगास म अंजोर छरियाये के आस बंध जाथे। चिरई-चिरगुन मन चंहचंहाये लगथे, झाड़-झरोखा, तरिया-नंदिया आंखी रमजत लहराए लगथें। रात भर के खामोशी नींद के अचेतहा बेरा के कर्तव्य शून्य अवस्था ले चेतना के संसार म संघराये लगथे। तब कर्म बोध […]
नवा सरकार म का छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति अपन मूल अस्तित्व म लहुटही…?
सुशील भोले , +919826992811 छत्तीसगढ के मूल संस्कृति इहां के मेला-मड़ई की संस्कृति आए। इहां के लोक पर्व मातर के दिन मड़र्ई जागरण के संगे-संग इहां मड़ई-मेला के शुरूआत हो जथे जेन ह महाशिव रात्रि तक चलथे। मड़ई के आयोजन जिहां छोटे गांव-कस्बा अऊ गांव म भरईया बाजार म आयोजित करे जाथे उंहें मेला के […]
आज के लइका मन बांटा म दाई-ददा ल बांट लेथें
आज के लइका मन बांटा म दाई-ददा ल बांट लेथें कोन काकर संग रइही अपन हिस्सा म छांट लेथें होथे जरूरत जब जादा एक-दूसर संग रहे के तब बज्जुर छाती करना परथे ए बीपत ल सहे के मया-पिरित के बंधना लइकई-झगरा म टूट जथे जाने कइसे ए उमर म आके देव-कृपा ह रूठ जथे […]