कहिनी: जय समाज गंगा…… परदेशी राम वर्मा
परेम मंडल हा पंडवानी गायक नोहय फेर जिहां चार पांच झन मनखे मन ला एक संग सकलाय देखथे त ये गीत ला टिपलिस उड़ाय बर ढील देथे – ”पांचो पंडो मिले आपस म जुआ के खेल रचाये रामा।“
बुधारू, लखन, सीताराम, चुरामन अऊ रामबगस ल पहिर ओढ़ के सइकिल म जात देखिस तहां फेर सुरू होगे परेम हा। बुधारू किहिस – ”अरे हरबोलवा परेम तोला हमन जुवा खेलइया दिखथन । जब पाथस तब टिमाली लगाथस । परेम किहिस – ”बुधारू पांडो मन जब जुवा खेले बर गीन होही तभो जुवारी अस नइ दिखिन होंही । फेर खेलिन के नहीं ? कोनो हा का करनी करे बर जात हे तेन हा नई दिखव बाबू । तंय नान नान बात म रीस कर लेथस । करथस रीस त सिललोड़हा ला पीस।
ओकर बात ला सुन के बुधारू घलो हांस परिस अऊ किहिस – ”बात तो बने काहत हस परेम ।“ हमन जात हन समाज के बड़े बइठका म। उहां आन प्रदेश के सबले बड़े नेता अवइया हे ।
म किहिस – ”होगे न तीन के तेरा । कहां छत्तीसगढि़या मन के समाज अऊ कहां आन प्रदेश के नेता । इही ल केहे गेहे नाचत रिहिस जोगी तेमा कूद परिस सन्यासी । ”बुधारू समझइस – ”परेम मनखे बड़े पद म बइठथे तहां ले सबो जगा जाय लगथे । न बिहार लागय न पंजाब । ओला इहां बलाय बर मोटर म भराके हमन गे रेहेन । हथजोरी पंवपरी करेन तब मानिस आयबर । जात हन ओकेर सेती । ऊहां ओहा अपन प्रदेश म सराब छोड़ा देहे । इहां छत्तीसगढ़ में शराब के नदिया बोहावत हे । ओकरे सेती बलाय हन । हंसवाय बर दोहा पारथे जोक्कड़ मन –
राम राज म दूध दही
कृष्ण राज म घी
कलजुग म देसी दारू
सुत उठ के पी ।
छत्तीसगढ़ हा बांच जय कहिके बाहिर के बड़का नेता ल बलाय हन जी।
परेम किहिस – अब छत्तीसगढ़ ल छत्तीसगढ़िया मन नइ सुधारे सकय बुधारू। येला बाहरी मन सुधारही । बने करेव । ले जाव भई । इहूं हा जुवा के खेल ताय । पासा पलट भी सकथे । पाचों झन जाव अऊ मन लगाके खेलव कहिके फेर लमइस ”पाचो पण्डो मिले आपस म जुवा के खेल रचायो रामा…. ।“
ओकर गीत ल सुनके हांसत कुलकत पाचों झन सइकिल म चढ़िन अऊ घंटा भर म पहुंचगे – समाज के बइठका म ।
ऊहां एक डाहर दस बारा जोड़ी दुल्हा दुल्हीन मन ऊंघाय अस बइठे राहंय । जब जब समाज के बड़े बइठका होथे गरिबहा घर के लइका मन के बिहाव घलो कराय जाथे । येला आदर्स बिहाव किथें फेर आदर्स ला गरीब मन बर घरिया के धर दे हें । कोनो बड़का घर के लइका मन आदर्स ला नइ मानंय।
रतीराम किहिस – ”सबो आदर्स अऊ बने रद्दा म चले के ठेका गरीबे मन के हे भाई । बड़का मन तो अइसे अंइठथे जइसे इंकर अलग समाज हे अऊ हमर अलग ।“
एक झन सियान तीर म बइठे राहय । वो हा किहिस – ”बिल्कुल हे । जतका टूरा-टूरी आन जात म बिहाव करत हें सब समाज के जाने माने घर के लइका रिथें । इहां मंच म तरा तरा के जऊन मन बात करथें ऊंकरे घर आगी लगे हे । घर ला सम्हारे नई संकय दूसर ला रद्दा देखाथे । किथे नहीं – ”देवता कुरिया म अंधियार अऊ छोड़सार बर दिया । तौन हाल हे ।“
अभी वो हा कुछू अऊ कहितिस के मंच म चार झन भाई लोगिन म चढ़े लगिन । माइक म एक झन बतइस के ये मन महिला समाज के बड़े नेता यें । हमर समाज म अब महिला मन ला गजब मान दे जाथे । हमन इंकरो मन के बात ला सुनबो । येती माइक म बोलइया हा कांही कुछू बतावत जाय ओती महिला समाज के नेता मन अपन बैग ले निकाल निकाल के दरपन म देखके के अपन मेकअप ला सुधारे अस करंय । कोनो मोबाइल ल चपकंय कोनो पानी के बोतल ला खोल के मुंह म पीये अस करंय । कोनो लुगरा पाटा ला साझियावंय।
तीन घंटा ले माइ लोगन भासन दीन । सुनइया मन थर्र खागें फेर बोलइया मन नइ थकिन । जेवन पानी के बेरा होइस तब सुनइया मन के जीव बांचिव अऊ सब थर झर्रावत खाय बर निकरिन।
खा-पी के फेर मजमा जमिस । देखो देखो होय लागिस बाहरी बड़े नेता के आगमन होवत हे ये बात बताय गीस अऊ थोरके देर म मंच भर म पुलिस चढ़गे । बाहरी नेता अइस । हार पहिराय के होड़ लगगे । एक झन बड़े नेता हा माइक म जाके कहि दीस के हमर पुरखा मन बाहिर ले आय रिहिन तेकरे सेती बाहरी नेता ला इहां देखके हमर छाती छप्पन इंच के होय अस करत हे।
एक झन जवनहां अस लइका हा चिल्लाके किहिस – ”छत्तीस इंच के तो पहली कर लव तब छप्पन बर सोचिहव । काली अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ला बला लुहू अऊ कहि दूहू के हमर पुरखा मन अमेरिका ले आय रिहिस । अरे अब परदेसिया मन के चिन्हारी के जरूरत नइये अब तो ये सवाल हे के छत्तीसगढ़ म निमगा छत्तीसगढिया कोनो हे के सबो झन बाहरी च हावंय । कभू तो देस भर के सगा मन ला अपन किथव । कभू मौका देखके छत्तीसगढ़ के लछमन रेखा पार देथव छत्तीसगढ़िया ऊंचहा जात के मन ला अपन दुश्मन घोषित कर देथे । ये हा का खेल ये । एक रद्दा मे चलथे तेह राज करथे । केहे गे हे –
एक चाल म बघवा रेंगय, करथे ऊही सियानी,
बारा चाल म भुलवा झूलय, बपुरा परे उतानी,
तैसन हाल हे । सब सइतानास कर देव ।
अभी वो हा अऊ चिचियातिस फेर पुलिस बाला मन ओला घेर लीन अऊ फेर मंच के माइक म अंते तंते, लपड़ झपड़ शुरू होगे । हमर गांव के पाचों झन संगवारी मन असकटा के उठिन अऊ फेर सइकिल म चढ़के-गांव डाहर निकलगें । रामबगस रद्दा म किहिस – ”परेम के गाना बिल्कुल सही ये जी । इहां तो सब जुवे खेले बर आय रिहिन भई । चीर हरन के पक्का तियारी चलत हे ददा । बड़े बइठका सिराथे तेकर बाद हफ्ता दस दिन म खत-उपत, बने बिगड़े ऊपर गोठ बात करे बर छोटे बइठका राखे जाथे । तीने दिन बाद गांव म समाज के सिपाही अइस अऊ पाचों झन ला संदेसा दीस के तीर के गांव के गौंटिया के मऊहारी म छोटे बइठका राखे गे हे । उहां ये गांव ले तूमन ला जाना हे । पाचो झन तियार होगे । बड़े बइठका म गेन त धुर्रा पायेन अऊ छोटे म जाबो त मऊहा पावो- बगस हा टिमाली करके किहिस।
समाज के सिपाही लखनू हा किहिस के गाड़ा भर कलारी अऊ काठा भर तुतारी वाला बड़े गौटिया के नाती हमर दाऊ हा अपन मउहारी म राखे हे बइठका । जगा अऊ जेवन दुनो दिही । गोमची जाय फेर गोमची के बाना नइ जाय । अब दाऊ करा मुस्कुल से दस अक्कड़ खेत हे फेर वाह के करेजा । देख समाज के बइठका अपन मउहारी मा राखे हे ।
बात सिराय नई पाय रिहिस तइसने परेम आगे । किहिस – ये दरी महूं तुंहर संग जाहूं।
रतीराम ठठा मड़इस – जिहां जिहां दार भात, तिहां तिहां परेम दास । सब झन जाय के भरोसा देवइन । समाज के चपरासी दूसर गांव म खबर दे बर चल निकरिस।
गांव के मन अब माखन ला गौंटिया नइ काहय फेर ओकर घरवाली वोला सदा गौंटिया किथे । पुरखौती के जमीन जहजाद सब सिरागे । दस अक्कड़ खेत अऊ पांच अक्कड़ के मउहारी बगैचा भर बांचे हे । उहीं उऊहारी म माखन गौंटिया के मान बढ़ाय बर समाज के बइठका राख दे गीस । पहली तो समाज के सियान बड़े गुरूजी हा ना नुकुर करिस फेर माखन गौटिया हा हथजोरी करिस त मानगे अऊ मउहारी बगैचा म एक सैकड़ा पक्का बोलकार मन सकलइन।
भोजन-पानी घल्लो हे के बोली बात भर ? चुरामन हा अंखियइस त रतीराम बतइस जिहां समाज के बड़े बोलकार मन सकलाथें ऊहां बिन पानी के कामे नइ चलय फेर ये हा तो बने बिगड़े सब काम के सरेखा लेबर बइठका रखेगे हे । सबला संका-कुसंका राखे के मौका मिलही । ऐसन बइठका म खाना भले झन मिलय फेर पानी जरूरी रथे । पानी बिना सब सुन्ना केहे गे हे।
रतीराम के बात अऊ आगू लंबा च लतिस तहां बिसेसर राम आगे अऊ माइक म खबर फेंकाय लगिस के सब झन बइठ जव । जिहां जगा बनथे ऊहें बइठव । अब हमर बड़े गुरूजी अपन बात बताही।
बड़े गुरूजी माने समाज के अघुवा। सबो राज के बड़े सियान। बड़े गुरूजी किहिस – ”देखव भई मोर बर तो दुब्बर दू असाड़ अस होगे । येती तुमन मोला सराब बंदी के काम ला आगू बढाय के मंतर दे देव त मंय बाहिर के बड़का नेता ला सगा जान के बला परेंव ओती तुमन बिन पिये अंते तंते बोले लगेव।
मंच म कहि देब के हमू मन बाहिर ले छत्तीसगढ़ म आय रेहेन । हमर पुरख मन बाहरी रिहिन । ये हा का बात ये भई । येती हमर नेता जी हा हमला पक्का छत्तीसगढ़िया बने बर मंतर देथे । अऊ तू मन बाहरी नेता ला देख के बगिया गेव । हमी मन ला बाहरी बना देब । त अइसन म हमन ला रद्दा देखा के सरग सिधारे बबा के मान घटिस के नही ? बाहिरी मन संग लड़े के का हक हे हमला ? अभी बड़े गुरूजी अऊ तनियाय अस करत रिहिस तइसने एक झन टुरेलहा बोलकार उठके किहिस में किसन लाल मोर बाप लखन लाल।
गांव कुरमी टोला, मोहल्ला चन्नाहूपारा, थाना बैसबोड़, ब्लाक दिल्लीवार पुर ओहा अऊ लमाय लगिस त गुरूजी किहिस – तंय तो पहली ले चढ़ा लेस रे बाबू । लड़मड़ावत हस । इहां बात चलत हे सराबबंदी के । हमन ओमा भिड़े हन अऊ तंय चढ़ाके आय हास।
किसन किहिस – ”नींद न चीन्हें अवघट घाट भूख न चीन्हें जात कुजात । सराब हा भेद मेटाथे । मेल कराथे मधुशाला । त सरकार हा मेल कराना छोड़के झगरा कराही का ? सब ला मेल कराय खातिर सरकार हा खुदे मधुशाला चलाना चाहत हे त हू मन काकर भड़कौनी म सराब बंदी के बात करत हव तेला बतावव ।“
अभी वो लइकाहा अपन बात ल घरियाय नई पाय रिहिस तइसने दुसरइया जवनहा टूराहा उठ खड़ा होइस । हाथ म लौठी अऊ घेंच म लाली गमछा लपेटे जवान हा अपन नाव बतइस कुमार । मोर नाव कुमार बाप के नाव परेम । बाप के धंधा खेती किसानी । मोर धंधा नेतागिरी । बाप खइस मछरिया भाजी मैं खाथंव मछरी । नेता के केहे ले हमन गेन आन प्रदेश मोटर म बइठके । तब अइस बाहरी बड़का नेता जी हा । हमर जात के नेता ला लानेन तेकर सेती हमर मुख्यमंत्री हा मंच म नइ चढ़िस । डर्रागे ।’
बड़े गुरूजी समझइस – ”बाबू डर्राय नइये । हमन अपन मान बढ़ाय बर बाहरी नेता ला लानेन तेकर रिस म नइ अइस ।“ बात तो एके ये । मूड़ के नाव कपार । जात के मंच म राजनीति करहूं त धारे धार बोहाहूँ । सबला बुद्धि दे हे भगवान हा । जात के मंच हा नेता बनाय के काम आवत हे । न कलाकार न सेवादार न गवैया कुदैया । सब तिरियागे । नेताच नेता नजर आथे । नाऊ के बारात म सब ठाकुरे ठाकुर । त इही हाल होही । नाव निर्मल दास अऊ सरीर भर खसू-खजरी। बात करथव समाज के अऊ बड़का नेता मन के इसारा म तमाशा करथव । कोन तुंहला नइ हांस ही । अब बड़े गुरूजी के बदला म वो नेता हा खड़ा होके माइक ला धरिस जौन हा बाहरी बड़का नेता ला देखके केहे रिहिस के हमू मन बाहरी अन । हमर पुरखा मन उही डाहर ले छत्तीसगढ़ म आय रिहिन।
ओला माइक म बोंबियावत देखके बीसो जवान खड़ा होगें । किहिन के – तंय भले होबे बाहरी फेर सबके ठेका काबर ले लेस । बिना पिये फरग गे तोर मुंह हा । सराबबंदी बर कसम खायेव अऊ बड़का शराबी लजा जहि तइसन बात करेव ।
नेता किहिस – ’देखो जी तुमन नई समझव।
ओकर अतका कहना रिहिस के चारो कोती ले अवाज अइस के हव सब समझत हन । नेता बने बर समाज ला रसातल म पहुँचावत हव । बड़े गुरूजी फेर खड़ा होइस अऊ किहिस – देखो जी, जहां राम रमायन तिहा कुकुर कटायन झन करव । हमन तो ओइसने छरियाय हन । तभे तो बाहिरी मन राज करते हें।
घर के भेदी लंका छेदी – हमरे बर केहे गेहे । हमन जब लौठी धरथन त ओ लउठी म अपने सगा ला पहली बजेड़थन । हमला मारे बर दूसर ला आय के जरूरत नइये । बड़े बड़े बात करे म हम बड़का नई बन जन । गंगा नहाय ले गदहा कपिला नइ बन जय।
बड़े गुरूजी अतके केहे पाय रिहिस के गदर मात गे । जवनहा छोकरा मन लौठी भांजे लगिन । दू तीन झन सियनहा मन के माड़ी कोहनी फूट गे।
तब तक तीन ठन बस म भरा के बड़े नेता जी के चेला मन सभा म आ पहुँचिन । ऊंकर पहुचते साठ सब सन्ना गें ।
नेता जी सादा कुरता, पैजामा पहिरे उतरिस । मंच म आके किहिस – ”काना ला भावंव नहीं काना बिना राहंव नहीं किथे तौन हाल तुंहर हे । हमन नेतागीरी करथन । त का हमर अतको नइ चलही समाज मा।
आप जाय जजमानो ला लें जय तौन हाल करत हव । अरे बाहरी बड़े नेता अइस त हमर भाई हा कहि परिस के हम मन बाहिर ले आय रेहेन । जोस ताय । हमन जौन सियान के पूजा करथन ओकर एक झन बेटी छŸासगढ़ ले बाहिर बिहाय गे रिहिस । त पुरखा के बेटी जब बाहिर म चल दिस त हमन बाहरी होयेन के नही । बतावव । डार के चूके बेंदरा अऊ असाड़ के चूके किसान पुरखा मन केहे हे । जब अतेक बड़ समाज के मेला लगे रिहिस त हमला सराबबंदी के बात करना जरूरी रिहिस । आज नहीं ते काल ये सरकार का सराब ल बंद करही।
समे ला चीन्हव । जब बंद होवइया हे तब पहिली ले चिचियाहू तभे तो तुंहर नाव होही । समे ला चीन्हथे तेने हा नेता बनथे अऊ जऊन हा अपन जात सगा, नियम-कान्हून ला धरे बइठे रहिथे तेनहा बनथे बड़े गुरूजी…. । ओकर अतका कहना रिहिस के सब हांसे लगिन । बड़े गुरूजी ला घलो हांसना परिस ।
अंत भला सो भला नेता जी किहिस अऊ अपन बात ला बीच म रोक के पूछिस – ”कोनो ला कुछू कहना हे । रोक टोंक नइये ? एक झन सियान हा कांखत उठिस अऊ किहिस – ”उघांवत रेहेंव जठना पा गेंव तौन बात ये मालिक । मंय हा कुछू कहना चाहत हंव । तुंहर बात हे सोरा आना सच । सच के जर पताल म । सियान हा लमइस
समाज ल आगू बढ़ना हे त काम अइसे करव के सब तुंहला बुधमान काहय । खेत जोतत जोतत तो हाथ के संग तुंहर पुरखा मन के दिमाग म घलो गांठ परगे । गजब मार खायेव । गारी खायेव । अबके गुन्निक बेटा मन अच्छा काम करत हव । छत्तीसगढ़ के मान बर नकली लड़ई करे म कर धरे । देखावा छोड़व सब संग नाता जोड़व । का धरे हे छत्तीसगढ़िया बनब म । छत्तीसगढ़िया झन बनव देसवासी बनव व मजा उड़व तूह मन ।
छत्तीसगढ़ हा मजा उड़ाय के धरती ये । तभे तो नारा बने हे छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया । माने जऊन छत्तीसगढ़ म मजा उड़ाथे तेमन सबले बढ़िया । लड़े म का घरे हे मोर ददा हो । भूकंत-भूकंत मर गें कतको सियान । दुधो गय दुहनो गय । ऊंकर खानदान के नाव मेटा गे । गांव के जोगी जोगड़ा आन गांव के सिद्ध फोकट नई केहे गेहे । अरे बाहरी बड़े नेता ला लान के तुमन सच्चा सपूत कहा गेव । कहां राजा भोज कहां भोजवा तेली । नई बलाय रेहेव त नई बलाय रेहेव बलायेव त ओला बलायेव जौन हा काली प्रधानमंत्री बनही । ऊही हा हमर छत्तीसगढ़ ला छत्तीसगढ़ सहीं बनाही । छत्तीसगढ़िया मन अपन घरो ला नइ सम्हारे सकंय तेमन का छत्तीसगढ़ ला संवारे सकहीं । संवारही आन प्रदेस के मन । उहीं मन लिखइया पढैया, उही मन पत्रकार, उही मन व्यापारी, उही मन नेता । उंकरे भरोसा भारी हे । वोमन ला मानहू त तुम्हरो मनके इज्जत बाढ़ही अऊ छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ करहू त कहूं के नई रहि जहू । समे हे अभी भी चेत जव ।
तुंहर जय जयकार होवय
जय समाज के गंगा ।
परदेशीराम वर्मा
एल.आई.जी.-18, आमदी नगर, हुडको, भिलाई (छ.ग.) 490 009
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