आलेखः ढेरा, खुमरी, तुमड़ी… काबर नंदावत हे हमर पुरखौती जिनिस
रचनाकार – अशोक पटेल “आशु”, तुस्मा शिवरीनारायन (छ ग) ९८२७८७४५७८
हमर छत्तीसगढ़ म ग्रामीण लोगन के पुरा-पुरा अउ सबले ज्यादा निवास हावय। जिहाँ के मुख्य व्यवसाय खेती किसानी अर्थात कृषि कारज हर आय। जे खेती किसानी म ए मन के सम्मक जीवन निर्भर रहिथे। मौसम के हिसाब से इहाँ दु ठन प्रकार के फसल लगाए जाथे ,पहिली खरीफ अउ दूसर रवि। खरीफ म धान के फसल अउ रवि म दलहन- तिलहन। जईसे की राहेर, तिवंरा,मुंग,उरीद,तिल,अउ संग म साग-भाजी।
एहर ए मन के तो व्यवसाय होगे। लेकिन इहाँ के तीज-त्यौहार, परंपरा, रिति-रिवाज, लोक-कला, संस्कृति, रहन-सहन, बोली-भाखा, नेवता- बड़ाई, अउ इहाँ के पुरखा मन के पारम्परिक उपकरण धरोहर के रूप म हावय, जेकर अपन अलग ही महत्व हावय। जेकर से हमर ग्रामीण मन के जीवन हर आत्मनिर्भर रहिथे। अउ कतका सुग्घर मजा के जिनगी ल बिताथे। हमर ग्रामीण समाज के जन-जीवन म अपन कारज अउ आवश्यकता ल पुरा करे खातिर अपन खेती-किसानी के उपकरण सहित अउ अन्य कारज के उपकरण ल अपन घर म रखे रहिथे।
ढेरा
ए उपकरण म एक कारज के पारम्परिक चीज आथे “ढेरा”। “ढेरा” शब्द दु ठन वर्ण मिल के बने हे। पहिली हे “ढे” अउ दूसर हे “रा” अर्थात “ढेरा”। ढेरा से तात्पर्य बड़का “तकली”। जेला हमर गाँव म “ढेरा” कहे जाथे। ढेरा से डोरी आंट के बनाय जाथे।
ढेरा हर धन आकार के डेढ़ बित्ता दु ठन मजबूत कठवा से बने उपकरण होथे। जेमा डेढ़ बित्ता के लोहा के एक तार लगे होथे। एकर नीचे के भाग हर धन आकार के दु ठन कठवा के बीचों-बीच लगे रहिथे। अउ ऊपर के भाग हर गरी काँटा अइसन कोंकी रहिथे। इही कोंकी लोहा के तार म सन, या पटवा के रेशा ल फंसा के ढेरा ल कस के आंटे जाथे। एकर बाद ओमा आंट आ जाथे। ओहर डोरी के आकार ले लेथे। अउ जतका अकन आंट चढ़े रहिथे, जेहर डोरी के आकार लेहे रहिथे ओला उही ढेरा म गोल लपेटे जाथे। तहाँ ले फेर ओकर मुड़ी म सन या पटवा के रेशा ल फेर थोर-थोर फंसाय जाथे। अउ फेर ढेरा ल आंटे जाथे। ए प्रकार से सुत या रस्सी के निर्माण करे जाथे। अउ ढेरा म इकट्ठा करे जाथे। जेला अपन घर म स्वयं बना के अपन आवश्यकता के चीज जईसे गेरवा, जोता, दौरी, सिका, जोतावर बनाये बर रस्सी बनाए जाथे।
खुमरी अउ तुमड़ी
अइसनहे हमर कारज के जिनिस हावय खुमरी अउ तुमड़ी- ए हर हमर जिनगी के एक अभिन्न अंग आय। लेकिन अब इहू हर धीरे-धीरे नंदावत जात हे। हमर पुरखा के मनखे मन कतका सुग्घर मजा के अपन आवश्यकता के जिनिस ल स्वयं अपन हाथ म बना लेवय अउ अपन कारज ल शुरु कर देवय। कतको घाम, प्यास, चौमास रहय ए खुमारी अउ तुमड़ी के भरोसा म सम्पन्न कर लेवय। चाहे रोजी मंजूरी के बात हो, या खेती-किसानी,ब खरी-बारी के बात हो, जम्मो कारज म खुमारी के छत्र-छाया अउ तुमड़ी के सफीन नंगत गुरतूर ठरत पानी के सहारा म जांगर टोर मिहनत ल अपन हाँसी-खुशी पुरा कर दारय। खुमरी हर पारम्परिक छ्तरी के रूप म उपयोग करे जाथे, जेखर से घाम पानी बरसा से अपन आप ल बचाय जाथे। ए खुमरी ल कच्चा बांस के पतला-पतला कामची ल सुघराई देवत गांथ के बनाय जाथे। एला बनाय के बेरा म एकर भीतरी भाग म पड़पड़ी ल डाले जाथे ताकि पानी बरसा ले बचे जा सके।
इही प्रकार से तुमड़ी भी हर हावय जेहर हमर ग्रामीण अंचल के जन-समुदाय के अभिन्न अंग माने जाथे। ए तुमड़ी हर “तुमा” फर ले बनाय जाथे। जब तुमा हर अच्छा से पोठा जाथे तब वोकर डेटा उपर थोरकिन छोड़ा के चार-चार आंगूर डेरी जेवनी चौकोर काटे जाथे। ताकि ओ हर कमंडल कस धरे के बन जाए। फिर ओकर भीतर गुदा बिज ल साफ कर दिए जाथे। अउ अच्छा से धो-धा के ओमा साफ पानी ल भर दिए जाथे। अउ कुछ एक बेरा के बाद एमा के पानी हर नंगत ठंडा हो जाथे। जेला फिर सुग्घर पिए जाथे।
अंततः यह कहे जा सकत हे कि हमर छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जन-जीवन म हमर आवश्यकता के जो पारम्परिक उपकरण हे ओहर नदावत जावत हे, जेला हमन ल सहेज के रखे के प्रयास करना चाहिए। जेहर हमर पुरखा के धरोहर आय। ए धरोहर ल यदि हमन सम्हाल के नई रखबो त आने वाला पीढ़ी हर ए पारम्परिक उपकरण ल भुला जाही। अउ ओकर उपयोगिता ,महत्व ल नई जान पाही।