काबर बाहरी लोगन के पिछलग्गू बने ले हम बांचे नइ पावत हन.. ?
शोषण के बहुत अकन रूप होथे। हमन छत्तीसगढ राज आन्दोलन संग जुड़े राहन त राजनीतिक शोषण के बात करन। आने-आने राज ले आए लोगन हमर शासन-प्रसाशन के अधिकार म बइठगे हवंय अउ हमर अस्तित्व के, हमर चिन्हारी के संहार करत हें, हमर मुंह के कौंरा ल नंगावत हें।
तब ये सपना देखे गे रिहिसे के जेन दिन छत्तीसगढ ह अलग राज के रूप म अपन चिन्हारी बना लेही, वो दिन इहां के जम्मो मूल निवासी मन के हाथ म इहां के जम्मो राज-काज आ जाही। तहां ले फेर जम्मो मूल निवासी मन के दिन बहुर जाही। इहां के बोली-भाखा म जम्मो काम-काज होही, पढई-लिखई होही, तब इहेंच के लइका मन जम्मो किसम के नौकरी-चाकरी म घलो अगुवा बन के बइठिहीं।
आज लगभग दू दशक बीते जावत हे, फेर ए कोरी भर के बछर म मूल निवासी वर्ग के कोरी भर मनखे घलोक ऊँचहा अउ ठोसहा पद म बइठे नइ दिखंय। उल्टा ये देखब म आवत हे, के जेकर मन के गुलामी ले मुक्ति खातिर राज आन्दोलन के नेंव रखे गे रिहिसे, तेकरेच मन के संख्या दिनों-दिन बाढतेच जावत हे।
गुनान करव, एकर मूल कारन का आय? काबर बाहरी लोगन के पिछलग्गू बने ले हम बांचे नइ पावत हन? कम पढे-लिखे मन के तो बात ल छोड़िच देवव, बड़े-बड़े पढंता अउ गुनिक मन घलो इहीच गुलामी के रद्दा म हवंय। मैं जिहां तक गुन पाएंव, एकर असल कारन आय धार्मिक अउ सांस्कृतिक गुलामी। चेत करव, सिरिफ राजनीतिक गुलामी नहीं, असल म धार्मिक अउ सांस्कृतिक गुलामी।
आने-आने राज के मनखे धर्म गुरु के चोला ओढ के आथें, संग म उहेंच के लिखे पोथी-पतरा अउ जीवन शैली लानथें, तहां ले फेर राष्ट्रीयता अउ राष्ट्रीय धर्म के नांव म हमला अपन मायाजाल म फांस लेथें। तहां ले फेर हम बिना कुछू गुने-समझे उंकर पाछू धर लेथन। उन धर्म के आड़ म हमर जमीन-जायदाद, रोजी-रोटी, शासन-प्रशासन अउ हमर जीवन शैली म घलोक कब्जा कर लेथें। इही आय असल म हमर गुलामी अउ शोषण के मूल कारन।
त गुनव, एकर ले बांचे खातिर का उपाय हे? जब हमर खुद के भाखा हे, हमर कला हे, हमर संस्कृति हे, त का हमर खुद के आध्यात्मिक जीवन शैली अउ पूजा-उपासना के पद्धति नइहे? निश्चित रूप ले हावय। अपन 21 बछर के साधना काल म मोला ए समझ म आइस, के हमर जगा तो सब कुछ हे। इहां के मूल संस्कृति एक सम्पूर्ण धर्म आय, एक सम्पूर्ण जीवन पद्धति आय। हमर जगा मौलिक जीवन शैली हे, पूजा-उपासना के विधि हे, त फेर हम धरम-संस्कृति के नांव म पर के पाछू काबर भटकत हावन? अपन खुद के जीवन शैली अउ उपासना विधि, जेला हमर पुरखा मन तइहा जुग ले धरे अउ जीयत आएं हें, उहीच ल फेर धो-उजरा के काबर नइ आत्मसात कर लेवन?
“आदि धर्म जागृति संस्थान” के गठन अउ वोला मैदान म स्थापित करे के ये उदिम असल म उही सब गुलामी ले मुक्ति के रद्दा देखाय के एक नान्हे उदिम आय। मोला भरोसा हे, इहां के जम्मो चिंतक अउ गुनिक मनखे मन हमर ए बात ल समझहीं, अउ अपन संगे-संग जम्मो मूल निवासी मनला घलो एमा जोर के जम्मो किसम के गुलामी अउ शोषण ले मुक्ति पाहीं।
सुशील भोले
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(ऐ लेख म लेखक के अपन विचार हे। जय जोहार मीडिया के विचार ऐमा नई हे)