महुआ के पतरी म, पसहर के भात। मिंझर के चुरहि, भाजी के छै जात।। भइस के दही संग, पाबोन परसाद। दाई पोता मार के, दिही आसिरबाद।। महतारी मन लइका खातिर, करे हे उपास। जुग जुग जिए मोर लइका, अइसे हे बिस्वास।। महतारी मन के सदा, सजे रहय सिंगार। जम्मो झन बर सुग्घर हो, कमरछठ के […]
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#Kamarchhath Festival
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