// कविता – छानी
डॉ. शैल चन्द्रा, नगरी, जिला-धमतरी
घर के छानी ले सुरुज झांके।
चंदा संग चंदेनी ह चिट्ठी बांचे।
पुरवाही पवन संग पाना-पत्ता डोले।
घर के छानी म चिरई -चिरगुन बोले।
मऊरे आमा के मौर मन झर-झर झरे।
घुमड़त बादर के पानी ह छानी ले झरे।
तब मन ह खुस होके झूमर जाये।
सीतल हवा म मन घुम्मर जाये।
जेठ-बैसाख म छानी ले सीतल पवन डोले।
रतिहा के चंदैनी अपन घूंघट ल खोले।
चांदनी अंजोर छिटक के घर म बगरे।
छानी के घर म मन ह उमंग ले भरे।
छानी के खपरा साल म बदले।
कतकोन कुम्हार मन ल रोजगार मिले।
आज छानी के घर कुरिया नंदागे।
सिरमिट के जंगल म पटागे।
खपरा के बनैया जाने कहाँ गँवागे।
छानी के सीतलता जाने कहाँ सिरागे।
छानी हमर जिनगी ले दुरिहागे।
अब सिरमिट के जंगल म लोगन मन भुलागे।