विशेष लेख: कईसे बहुरहि घुरुआ के दिन…..
खोमेन्द्र देशमुख. छत्तीसगढ़ के ए पुराना कहावत हे कि घुरुआ के दिन घलो बहुरथे…। याने कि अईसन चीज जेखर कोनों महत्व ल नई समझिस तेखर थोड़किन दिन बाद अब्बड़ महत्व ह बाढ़ जाथे। इही हाल अब छत्तीसगढ़ म अब खुदेच घुरुआ के होए बर हे। घुरुआ भर नहीं बल्कि ओखर संग नरवा, गरुआ अऊ बारी के दिन घलो बहुरईया हे।
ऐ सब के किस्मत ह बदलत हे हमर प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल के सोंच के कारण, पीछू के साल ले हमर जुन्ना सरकार के योजना अउ आज के चमक-धमक के बीच म हमर कतको संस्कृति ह घलो सिराय बर धर ले रिहिस हे, फेर अब छत्तीसगढ़िया मुखिया बने ले छत्तीसगढ़िया मन ल आस जागे हे। हमर मुखिया के निर्णय हे कि हमर प्रदेश म नरुआ, गरुआ, घुरुआ अऊ बारी ल बचाना हे… तभे हमरो अस्तित्व ह बाँचही। ए सब हर जिंदगी म अब्बड़ महत्व राखथे।
बीतईया कुछ बरस ले गाय ह गांव के घर से निकलके गौशाला म चल दे हे। ओला हमन ल फेर घर म लाना हे। अईसने विडंबना होगे हे के घर म कथा करथन तभो गौरी गणेश बनाए बर गाय के गोबर खोजे बर लागथे। ए बड़े सोचे के विषय बनगे हे, लेकिन अब अइसन नई होन देना हे। हमन ल हमर गौमाता के पूजा अपन घर म ही करना हे।
छत्तीसगढ़ सरकार अब नरुआ, गरुआ, घुरुआ अऊ बारी सबो ल हमर जिंदगी संग जोड़े के बीड़ा उठाए हे। नरवा म पानी रोकना हे, जेखर ले हमर जलस्तर अउ सिंचाई के छमता बढ़ही। फसल ह घलो बने होही। बाड़ी म हरियाली छाही त हमर जिंनगी बने चलही अउ गौ-माता के सेवा घलो होही। दूध, दही घलो मिलही, अउ फसल बने होही त समृद्धि बाड़ही। घर, खेत अउ कोठा ले निकले कचरा ले देसी खातू बनहि अउ ओखर ले फसल के पैदावारी बढ़ही। गोबर गैस ले जेवन घलो चुरहि अउ मंहगा गैस के चक्कर ले छुटकारा मिलही। सरकार अब ये जम्मो के संरक्षण अउ संवर्धन बर कदम उठाथे बस हमन ल एखर फायदा उठाना है।
भले ए सब आज के जमाना म थोड़किन आगू के बजाए पाछू जावत लागत होही फेर आधुनिकता ल थोड़किन छोड़ के ऐमे धियान धरबो त हमर नरुआ, गरुआ, घुरुआ अऊ बारी के अस्तित्व ह बांचही। अऊ एमन बांचे रही त हमर जिंनगी के मजा ह घलो बाढ़त रही। संगे संग गांव अऊ ओखर विकास के सपना ह साकार होही। हमर प्रकृति संग जीए के हमर बिसरे मउका ह फेर आवत हे जेमा आधुनिकता के घलो मिसरण होही त हमर जिनगी ल ममहाए अऊ लहराए बर कोनोंं नई रोक सके।