छत्तीसगढ़ी लोकसंगीत रामधुनी (रामछत्त्ता)
✍️गनेश्वर पटेल, ग्राम पोटियाडिह, धमतरी (छ.ग.) छत्तीसगढ़ के संस्कृति अउ कला ह अड़बड़ विस्तृत अउ सुघ्घर हे। छत्तीसगढ़ के लोक कला अउ संगीत के अड़बड़ अकन ले रूप देखेंब मिलथे, पन्डवानी, रामायन, जसगीत, नाटक, पंथी नृत्य, भरथरी, बांसगीत, देवार गीत, करमा, सुवा, ददरिया सबो के अपन अपन अलग अलग विशेषता हे, अलग अलग पहिचान हे। […]
हरेली परब म विशेष: खेती -किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेली
हमर छत्तीसगढ़ हा कृषि प्रधान राज्य हरे. हमर प्रदेश के किसान मन धान के खेती जादा करथे. एकर सेति छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा कहे जथे. इहाँ के कतको तिहार बार हा खेती किसानी ले जुड़े हवय. अक्ती तिहार हा धान बोवाई के संकेत हरय ता हरेली परब हा धान के सुग्घर हरियरपन दिखे के […]
तरिया नंदावत हे
विजय मिश्रा ‘अमित’, पूर्व अति.महाप्रबंधक (जन), रायपुर नवां जमाना के रंग म पूरा दुनिया ह घेंच के आवत ले बुड़े हावय। घर ह अब खाली घर नई रहिगे, बल्कि इहां बाहिर बट्टा अउ नहाय धोय के ठिकाना तको बनगे हांवय। पहिली जमाना म बड़े फजर मनखे मन हर तरिया कोती जांवय। अब तो आज के लइका मन हर तरिया काए तेला नई जानय। ए बात हर अइसे उजागर होईस। गरमी के छुट्टी होगे रहिस। ते पाए के फुरसतिहा लईका ल घरे म बने नहानी खोली म लगर लगर के नहवात रहेवं। तभे ओला बतायवं कि हमन हर बालपन म तरिया म डुबक डुबक के नहावन। त ओ हर ऑखी फारत पूछिस – ‘तरिया क्या होता है पापाजी..? ओखर सवाल ल सुन के मेहर बक खा गेवं। फेर सोचेवं कि गलती हमरे आय। काबर की हमन ह लइका मन ल रीति रिवाज संस्कृति अउ गांव गवंई ले दूरिहा राखे हांवन। अपन गलती ल सुधारे खातिर लइका ल ‘बूढा तालाब’ल देखाय बर लेगेंव। ओ तरिया ल देखथे साथ लईका हर नाक भौं सिकोड़त अपन नाक ल चपक के बोलिस ‘छी.. छी.. छी..। इतनी गंदी जगह में आप नहाथे थे..? आपको स्कीन डिसीज नहीं होती थी क्या पापा जी..? मोर लइका के भाव ल देखके बिचारा तरिया ह रो डारिस ओ हर बोलिस- बेटा पहिली के तरिया अउ आज के तरिया म बहुत फरक आ गे हे। अब के तरिया म पानी कम कचरा, कूटा अउ कागज पन्नी जादा बज बजावत दिखथे। फेर एक जमाना म तरिया हर पिए के पानी के तको अधार रहिस। ओखर बात ल सुनके मोर बेटा ओह नो नो कहत पीछु कोति खसके लागिस। तब ओखर खांध म हाथ राख के ओला तरिया तीर म बइठारत बोलेवं – हां बेटा। तरिया के बात हर सही आए। मोला सुरता हे आज ले साठ बछर पाछु के बात आए जब रायगढ़ जिला के जतरी गॉव के इस्कूल में मेंहर पढ़त रहेवं। तब प्यास बुझाए बर तरिया के भीतरी माड़ी भर गहिला म घुसर के तरिया पानी म मुंह ला दंता के गाय बछरू कस पानी ला गटागट पी देत रहेन। मोर बात ल सुनके तरिया के पानी ह खुस होगे। हिलोर मारत तरिया ह मोला बोलिस- अब के नवां पीढ़ी के लइका मन ह तो अइसन गोठ ला सुन के आप ल ‘आदिमानव’अउ नहीं त जनावर कही दीही। बंद बोतल के पानी पिवईया नवा जमाना के लईका उज्जर तरिया के पानी के सवाद ला का समझ पाही। तरिया संग गोठबात ल आघू बढ़ावत अपन लइका ल बताएं – जनमन के जरूरत के मुताबिक पानी के पूरती करोइया साधन अकेला तरिया हर रहय। असाढ़ म बरसे पानी ला जमा राखे के अइसन परंपरागत साधन तरिया ह ‘‘ग्राउन्ड वॉटर लेबल रीचार्ज’के तको उत्तम उपाय रहिस। सब्बो जीव जन्तु के प्यास बुझोइया ए जलागार हर ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्ब’के मरम ला तको बतावय। पहिली हरेक गॉव शहर म कम से कम एक ठिन तो बड़े भारी तरिया जरूर रहाय। जिहां कमल, कुमुदनी फूले रहाय अउ तरिया के पार म आमा, बर-पीपर, लीम के हरियर हरियर रूख म तोता-मैना, पंड़की कस रंग बिरंगी चिरइ चिरगुन मन के कलरव ल सुन सुन मन ह गदगद हो जावत रहिस। तरिया के पार म देवालय रहय, जिहां तीज तिहार म बड़े बड़े मेला लगय। ‘हां साहब जी’ कहत पीरा म बूड़े तरिया ह लम्बा सांस छोंड़ के बोलिस- अब तो दसा एकदम उल्टा हो गे हावय। साफ, सुंदर तरिया देखना सपना होगे हे। तरिया मा कमल के जगह जलकुंभी अऊ बदख के जगह कुकुर, सुरा अउ बइला भईंसा के राज होगे हे। ए हर बड़ा चिंता के बात आय कि जिनगी के अधार तरिया के पीरा हरोईया कोनो नइ दिखथ हावय। अपन पुरखा के देहे अइसन सुंदर जिनीस ला खतम करके मनखे अपने हाथ अपन जिनगी ला उजारत हावएं। तरिया ला पाट के बड़े बड़े बिल्डिंग बनोइया मनखे ‘जल हे त कल हे’बात ला भूलावत जात हें। अतका कहत कहत तरिया पीरा म बूड़े कुछू बोले नी सकीस। तब ओखर पीरा ल समझत अपन लइका ल बताएं कि अब तो तरिया म शहर भर के नाली के पानी भरावत दिखत हे। कई किसिम के रसायनिक जिनीस म बने देवी देवता के मूरती ला तरिया मा सरोवत हावएं। इही पाय के तरिया के पानी ह सरके गंधावत हे। बिकास के आड़ मा अंधरा दउड़ के होड़ माते हे। ओहू हर बिचारा तरिया बर मुड़ पीरवा बन गे हावए। नदांवत, कमतीयावत तरिया के सेथी अब गांव शहर म गरमी बाढ़त हे, जलस्तर ह गिरत हावय। अउ तरिया बिचारा जइसे तइसे अपन जिनगी ला बंचावत आखरी सांस गिनत हावए। हमर बात ल सुन समझ के मोर बेटा पूछिस- पापा जी तो फिर तालाबों को बनवाने, देख रेख करने का काम कोन करता था..? अब कोई क्यों नहीं करता..? बेटा के मन म तरिया बर जागे अइसन सवाल ल सुनके तरिया ल थोरिक बने लागिस ओह फेर हिलोर मारत बोलिस- बने सवाल पूछे हस बाबू। सुन, पहिली जमाना म लोगन अपन तन मन धन लगा के तरिया बनवाएं। ओला गहीला करे बर, ओखर सफाई बर एकजुट रहएं। फेर अब के मनखे तो सरकार कोती मुंह ताकत रहिथें। तरिया ल संवारे बर पक्का घाट अउ ओखर चारों मुड़ा लोहा के रेलिंग कहुं कोनो सरकारी पईसा म बन लग जाथे त मुरूख मनखे मन ह ओला काट के ले जाथें। एहर गुनोईया मन बर बड़ फिकर के बात आए। तरिया के बात ल आघू बढ़ावत मेंह बोलेवं- अइसनेहे फिकर करोइया बड़े बड़े समाजिक अउ धार्मिक संगठन कतको गांव शहर मा हावयं। अउ तरिया के महत्तम ह पितरपाख म आजो दिखथे। मरनी हरनी म तको तरिया पार म पूजा पाठ अउ संसकार करोइया मनखे के कमी नइहे। अइसनेहे धरम करम करोइया मनखे एक हो जाएं अउ तरिया के पीरा ला हर लेवयं त तरिया के बिगड़त दसा ह सुधर जाही। एमन के जागे के बेरा आगे हावय। खुसी के बात आए कि कोनो कोना जगह मा तरिया के पीरा हरे के काम लोगन मिल जुल के करत हावयं। अइसन मन ला जय जोहार कहत अपन बात ल खतम करत उठे लागें त मोर बेटा ह तरिया के पानी म हाथ सहलावत बोलिस- पापा जी अब तो तालाब की आब को बचाना ही है। […]
भईया लाल हेड़ाऊ : छत्तीसगढ़ नाट्य विधा के विरासत, अभिनेता, गायक, रंगकर्मी अऊ मंच के उदघोसक रहिन
8 अक्टूबर जयंती के बेरा म सादर नमन जोहार
लोक आस्था के परब ‘आठे’
भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव जेला हम सब ‘आठे’ या ‘आठे कन्हैया’ के नांव ले जानथन.
अब लइका मन पढ़हीं छत्तीसगढ़ी मा
हमर भारतीय संविधान अउ शिक्षा नीति मन मा घलो लइका मन ला अपन मातृभाषा मा पढ़ई-लिखई बर जोर दे हवे।
20 अगस्त पुण्यतिथि म सुरता : त्याग अउ करुणा के देवी रहिन नगरमाता बिन्नी बाई सोनकर
त वो सोज्झे कहि दिस- “मैं नून चटनी म बासी खाके जी लेहूं फेर सरकार के कोनो किसम के सहयोग नइ झोंकौं.”
21 अगस्त 2023 नागपंचमी बिसेस: नाग देव मन के प्रति आस्था के परब नाग पंचमी
हमर हिंदू धर्म म पूजा पाठ कर्म काण्ड अनुष्ठान के एक धार्मिक कारण अवश्य रहिथे
16 अगस्त जयंती म सुरता: कला अउ साहित्य के संगम रहिस डॉ. सीताराम साहू
साज सम्हर के आइस देवारी, लक्ष्मी धन बरसावत
माटी के दीया ह करिस अंजोरी, चंदा देख लजावत